क्या पुलिस बचा रही है अपराधियों, रसूखदारों और नेताओं की साख?
पुलिस पर हमेशा से ही रसूखदार व्यक्तियों और नेताओं के दबाव में काम करने के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन ‘द तथ्य न्यूज़’ एक ऐसा चौंकाने वाला खुलासा कर रहा है जिससे यह प्रमाणित होता है कि सत्ता पक्ष के नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों की ‘इज्जत’ बचाने के लिए पुलिस सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों की भी खुलेआम अवहेलना करने से पीछे नहीं हट रही है।
पुलिस का दोहरा रवैया: सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी कर ‘चेहरे’ देखकर अपलोड हो रहीं फिर।
पुलिस की आधिकारिक वेबसाइट पर ऑनलाइन FIR अपलोड करने का प्रावधान है, ताकि कोई भी नागरिक इन्हें आसानी से देख और डाउनलोड कर सके। हालांकि, हमारी पड़ताल में सामने आया है कि पुलिस पोर्टल पर FIR अपलोड करने में चयनात्मक रवैया अपना रही है। आपराधिक मामलों के विशेषज्ञ अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में स्पष्ट आदेश जारी कर चुका है कि पुलिस को FIR को 48 घंटे के भीतर पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य है। दूरदराज के क्षेत्रों या कनेक्टिविटी संबंधी समस्याओं के मामलों में भी अधिकतम 72 घंटे का समय दिया गया है। केवल बलात्कार, पॉक्सो एक्ट और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मामलों में ही FIR अपलोड न करने का अपवाद मिलता है, लेकिन इसके लिए भी डीएसपी रैंक से ऊपर के अधिकारी की अनुमति आवश्यक होती है। परंतु, वर्तमान स्थिति इन निर्देशों के ठीक विपरीत है। यह पुलिस की जवाबदेही पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।
चौंकाने वाली पड़ताल: पोर्टल से ‘नदारद’ रसूखदारों की FIR।
‘द तथ्य न्यूज़’ ने पिछले कुछ महीनों में रसूखदारों और नेताओं से जुड़े मामलों को पुलिस के FIR पोर्टल पर गहनता से खंगाला, जिसके नतीजे बेहद disturbing थे। इस पड़ताल में यह स्पष्ट हुआ कि नामचीन बिल्डरों, पत्रकारों और भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज गंभीर अपराधों में FIR महीनों बाद भी पोर्टल पर अपलोड नहीं की गई हैं।
पत्रकार गंगा पाठक का मामला: न्याय से वंचित आदिवासी। जबलपुर के थाना बरगी में पत्रकार गंगा पाठक और उनके साथियों के खिलाफ FIR क्रमांक 120/25 आदिवासी की जमीन हड़पने के मामले में दर्ज की गई थी। दो महीने बीत जाने के बाद भी यह FIR पुलिस के आधिकारिक पोर्टल पर अपलोड नहीं हुई है। पोर्टल में 12 मार्च 2025 को FIR क्रमांक 92/25 दिख रही है और उसके बाद सीधे 13 मार्च को FIR क्रमांक 121/25 नजर आ रही है, जबकि 120/25 का कोई अता-पता नहीं है। इसी तरह तिलवारा थाने में दर्ज की गई FIR क्रमांक 93/25 भी पोर्टल से गायब है। यह एक दयनीय स्थिति है जहां एक आदिवासी को न्याय के लिए इंतजार करना पड़ रहा है, जबकि प्रभावशाली व्यक्तियों की FIR को जानबूझकर छिपाया जा रहा है।
नरसिंहपुर बीजेपी उपाध्यक्ष की FIR भी छिपाई गई: सत्ता का दुरुपयोग! हाल ही में नरसिंहपुर के भाजपा उपाध्यक्ष संतोष पटेल पर एक अनुसूचित जाति की महिला से अश्लील बातें करने के आरोप लगे थे, जिसके बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया था। इस मामले में FIR क्रमांक 69/25 दर्ज हुई थी और इसने मीडिया में भी काफी सुर्खियां बटोरी थीं, लेकिन पुलिस के पोर्टल में यह FIR आज तक अपलोड नहीं हुई। वहीं, इसी तरह का एक मामला जीतू पटवारी के खिलाफ भी दर्ज हुआ था, जब इमरती देवी ने डबरा थाने में उनके खिलाफ FIR क्रमांक 355/24 दर्ज कराई थी। चूंकि जीतू पटवारी सत्ता पक्ष के नेता नहीं हैं, पुलिस ने यह FIR तुरंत पोर्टल पर अपलोड की थी और इसमें कोई ढिलाई नहीं बरती गई थी। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पुलिस किस प्रकार सत्ताधारी नेताओं और विपक्ष के नेताओं के साथ अलग-अलग व्यवहार करती है।
वकीलों और पुलिस कर्मियों के विवाद की FIR भी नदारद:
कानून के रखवालों की दोहरी नीति! बीते दिनों जबलपुर में माढ़ोताल थाना अंतर्गत चेकिंग के दौरान वकीलों और पुलिस कर्मियों के बीच विवाद हुआ था। इस मामले में वकीलों के भारी आक्रोश के चलते पुलिस कर्मियों के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी। पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार वकीलों के खिलाफ भी FIR दर्ज करने की बात की गई थी। घटना की तारीख को होटल में FIR क्रमांक 291/25 के बाद सीधे FIR क्रमांक 294/25 नजर आ रही है। इस तरह पोर्टल से कुल दो FIR अपलोड न करके छिपा दी गई हैं। यह घटना पुलिस की उस छवि पर दाग लगाती है, जिसमें वे निष्पक्ष होने का दावा करते हैं।
रसूखदार भाजपा नेता अमित द्विवेदी की FIR अपलोड नहीं हुई: न्याय का गला घोंटा जा रहा है! भाजपा नेता अमित द्विवेदी जो अपने साथियों के साथ एक रहवासी क्षेत्र में पेड़ काटने के लिए पहुंचे थे तो इसके विरोध के चलते उन पर एक दलित परिवार से मारपीट करने के आरोप लगे थे। अमित द्विवेदी के साथियों ने भी उस परिवार के खिलाफ मारपीट के आरोप लगाए थे। इस मामले में दलित परिवार के खिलाफ दर्ज की गई FIR क्रमांक 419/24 तो पुलिस द्वारा पोर्टल पर अपलोड की गई, लेकिन भाजपा नेता अमित द्विवेदी के खिलाफ दर्ज की गई FIR क्रमांक 420/24 को सात महीने बीत जाने के बाद भी आज तक पोर्टल पर अपलोड नहीं किया गया। ऐसे अनगिनत मामले हैं जो स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि सत्ता पक्ष के नेताओं और रसूखदारों से जुड़े मामलों की FIR पुलिस द्वारा जानबूझकर छिपाई जा रही है और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का खुला उल्लंघन हो रहा है। यह दलित समुदाय के प्रति पुलिस के पक्षपातपूर्ण रवैये को उजागर करता है।
पुलिस की साख पर गहरा संकट: न्याय व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न चिन्ह।
इस पड़ताल से यह स्पष्ट हो जाता है कि पुलिस तंत्र अब न केवल सत्ता पक्ष के रसूखदारों और प्रभावशाली नेताओं के दबाव में काम कर रहा है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशा-निर्देशों की भी खुलेआम अवहेलना कर रहा है। FIR पोर्टल की पारदर्शिता का उद्देश्य आमजन को न्याय व्यवस्था में भरोसा दिलाना था, लेकिन जब कानून के रखवाले ही चेहरों और पहचान के आधार पर FIR छिपाने लगें, तो आम आदमी की न्याय तक पहुंच और भी मुश्किल हो जाती है। यह प्रवृत्ति न केवल लोकतंत्र के लिए घातक है, बल्कि न्याय की अवधारणा पर सीधा प्रहार भी है। यदि समय रहते इस व्यवस्था में पारदर्शिता नहीं लाई गई, तो आम जनता का पुलिस और कानून पर से विश्वास पूरी तरह खत्म हो जाएगा।यह स्थिति हमारी न्यायिक प्रणाली और पुलिस की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करती है। क्या न्याय अब केवल रसूखदारों के लिए है? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब यदि जल्द नहीं मिला, तो इसके दूरगामी और विनाशकारी परिणाम होंगे।