रीवा, मध्यप्रदेश | द तथ्य न्यूज़ डेस्क रीवा जिले के ग्रामीण यांत्रिकी सेवा विभाग में पदस्थ कार्यपालन यंत्री टीपी गुर्देवान एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। इस बार वजह बना है सोशल मीडिया पर वायरल हुआ उनका एक बयान, जो न केवल विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करता है बल्कि राज्य के प्रशासनिक ढांचे की साख को भी कठघरे में खड़ा करता है।
वायरल वीडियो में क्या कहा गया?
सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे इस वीडियो में टीपी गुर्देवान साफ कहते सुनाई दे रहे हैं कि, “ऊपर के अधिकारियों को सिर्फ माल चाहिए”। इतना ही नहीं, वह यह भी स्वीकार करते दिखते हैं कि एक उपयंत्री को बचाने के लिए विभाग में बैकडेट में दस्तावेज तैयार करवाए गए। यह स्वीकारोक्ति किसी प्रशासनिक गलती की नहीं, बल्कि नियोजित कदाचार की ओर इशारा करती है।
प्रशासन की सख्त प्रतिक्रिया, नोटिस जारी
वीडियो के सामने आते ही प्रशासन हरकत में आया। रीवा कलेक्टर डॉ. प्रतिभा पाल ने मामले को गंभीरता से लेते हुए टीपी गुर्देवान को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। उन्हें 24 घंटे में लिखित स्पष्टीकरण देने को कहा गया है। प्रशासन ने साफ किया है कि इस तरह के बयान शासन की साख को गहरा आघात पहुंचाते हैं।
वरिष्ठ पद पर बैठे अधिकारी का गैर-जिम्मेदाराना स्वीकारोक्ति
गुर्देवान, जो ग्रामीण यांत्रिकी सेवा विभाग के एक वरिष्ठ पद पर हैं, सड़कों, भवनों, और अन्य विकास कार्यों की देखरेख करते हैं। ऐसे पद पर बैठे व्यक्ति का यह बयान केवल व्यक्तिगत विचार नहीं हो सकता — यह उस संस्थागत भ्रष्टाचार का प्रतीक है जो भीतर ही भीतर सिस्टम को खोखला कर रहा है।
वीडियो की सत्यता और संदर्भ पर सवाल
स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, यह वीडियो संभवतः किसी अनौपचारिक बैठक के दौरान रिकॉर्ड किया गया था। हालांकि, अभी तक इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। लेकिन वीडियो की स्पष्टता और अधिकारी की सहजता यह साबित करती है कि यह कथन आश्चर्यजनक नहीं, बल्कि सामान्य चलन का हिस्सा हो सकता है।
बैकडेट दस्तावेज़: सिर्फ एक गलती नहीं, गंभीर अपराध
गुर्देवान द्वारा बैकडेट में दस्तावेज तैयार करवाने की बात कबूलना कानूनी और नैतिक दोनों स्तरों पर गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। यह दर्शाता है कि विभाग में न केवल भ्रष्टाचार व्याप्त है, बल्कि उसे ढंकने के लिए नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। यह बात भी साफ नहीं है कि ऐसे कार्य उनके अकेले के निर्देश पर हुए या किसी ‘ऊपरी दबाव’ में।
क्या यह सिर्फ एक अधिकारी का मामला है?
इस पूरे घटनाक्रम ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह सिर्फ टीपी गुर्देवान की व्यक्तिगत गलती है, या फिर यह एक गहरे और जड़ जमा चुके भ्रष्ट सिस्टम की झलक है? वीडियो में जिस तरह का आत्मविश्वास और अनुभव उनके शब्दों में दिखता है, वह यह संकेत देता है कि ऐसा व्यवहार शायद विभाग में असामान्य नहीं है।
आगे क्या हो सकता है?
प्रशासन फिलहाल उनके जवाब का इंतजार कर रहा है। यदि जवाब असंतोषजनक पाया गया तो गुर्देवान के खिलाफ विभागीय जांच, निलंबन और अन्य अनुशासनात्मक कार्यवाही तय मानी जा रही है। यदि मामला गंभीर स्तर तक गया तो लोकायुक्त या आर्थिक अपराध शाखा (EOW) द्वारा भी जांच की संभावना है।
जनता और सिस्टम के बीच भरोसे की दरार
इस तरह की घटनाएं जनता और प्रशासन के बीच के विश्वास को बुरी तरह तोड़ती हैं। जब खुद अधिकारी ये मानने लगें कि नियमों की कोई अहमियत नहीं और सब कुछ ‘माल’ से चलता है, तो लोकतंत्र और जवाबदेही का तंत्र कमजोर होता है।