498A टी कैफे: नीमच के केके धाकड़ का अनोखा विरोध, जो देशभर में चर्चा का विषय बन गया है
🔸 शादी, सपना और संघर्ष — सबकुछ टूटा एक झूठे केस से
नीमच जिले के छोटे से कस्बे अठाना के रहने वाले कृष्णकुमार धाकड़ (उर्फ केके धाकड़) की कहानी एक आम युवक से असाधारण संघर्ष की कहानी बन चुकी है। UPSC की तैयारी कर रहे केके ने शादी के बाद कुछ नया करने की ठानी — उन्होंने पत्नी के साथ मिलकर मधुमक्खी पालन शुरू किया। उनका सपना था आत्मनिर्भर भारत और महिला सशक्तिकरण में योगदान देना।
वर्ष 2021 में केके और उनकी पत्नी द्वारा शुरू किए गए मधुमक्खी पालन के काम को उस समय की राज्य सरकार ने भी सराहा। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद उनके प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया था।
लेकिन सपनों का यह मधुमक्खी छत्ता जल्द ही बिखर गया…
🔸 पत्नी के पलटते ही उजड़ गई पूरी ज़िंदगी
साल 2022 के अक्टूबर में केके की पत्नी बिना किसी विवाद के अपने मायके चली गई। महीनों बाद उन्हें पता चला कि उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (दहेज प्रताड़ना) और 125 (भरण-पोषण की मांग) के तहत केस दर्ज हो चुका है।
केके कहते हैं—
“ना कोई घरेलू हिंसा हुई, ना ही कोई दहेज मांगा गया। फिर भी एक झूठे केस ने मेरी ज़िंदगी और माँ का सहारा छीन लिया।”
🔸 शहद से चाय तक: एक टूटा बिज़नेस, एक नई शुरुआत
एक समय देशभर में उनके शहद की डिमांड थी। अब वे अंता में एक टीन शेड के नीचे चाय बेचते हैं — हाथों में हथकड़ी पहनकर, सिर पर दूल्हे की सेहरा सजाकर, और दीवारों पर न्याय की पुकार करते नारों के साथ।
उनकी दुकान का नाम ही सब कुछ बयां करता है —
👉 498A टी कैफे
यह कोई मार्केटिंग गिमिक नहीं, बल्कि आत्मसम्मान से जुड़ा आंदोलन है। दुकान पर बड़े-बड़े होर्डिंग लगे हैं:
“498A के खिलाफ कड़वी चाय”
“125 में कितना देना पड़ेगा खर्चा, आओ चाय पर करें चर्चा”
“कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए हर कप में न्याय की चुस्की”
🔸 ‘498A बाबा’ बन चुके हैं केके
अब लोग उन्हें ‘498A बाबा’ कहने लगे हैं। कुछ सहानुभूति दिखाते हैं, तो कुछ उनका मज़ाक उड़ाते हैं। लेकिन केके कहते हैं—
“मैंने मरने की बहुत बार सोची। लेकिन माँ का चेहरा याद आता है। अब यही चाय की टपरी मेरा संघर्ष है, मेरी लड़ाई है, मेरी उम्मीद है।”
🔸 498A: कानून या हथियार?
धारा 498A को महिलाओं को दहेज प्रताड़ना से बचाने के लिए बनाया गया था। लेकिन कई मामलों में यह कानून बदले की भावना या मानसिक दबाव के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि 498A के केसों में लगभग 70% मामलों में पुरुष बरी हो जाते हैं। इसका मतलब है — बड़ी संख्या में बिना ठोस आधार पर केस दर्ज हो रहे हैं।
🔸 मन की बात: आत्महत्या से आंदोलन तक
केके बताते हैं कि एक समय ऐसा आया जब वो सब कुछ खत्म कर देना चाहते थे।
“मैंने एक सुसाइड नोट तक लिखा था। लेकिन फिर सोचा, अगर मैं भी झुक गया तो शायद मेरी तरह कई पुरुष चुपचाप बर्बाद हो जाएंगे। इसलिए अब मैंने फैसला किया है कि इसी धरती पर, जहां मुझ पर झूठा केस चला, वहीं मैं ‘चाय के ज़रिए न्याय’ की लड़ाई लड़ूंगा।”
🔸 सवाल जो पूरे सिस्टम से है: क्या पुरुषों की भी कोई सुनवाई है?
हमारे देश में महिला सुरक्षा कानूनों की आवश्यकता और महत्व पर कोई सवाल नहीं है। लेकिन जब इन्हीं कानूनों का दुरुपयोग होता है, तो उसका बोझ केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि समाज की सोच पर भी पड़ता है।
केके धाकड़ की कहानी उन हजारों पुरुषों की कहानी है जिनकी आवाज़ सुनवाई से पहले ही दबा दी जाती है।
🟡 क्या कहते हैं कानूनविद?
विधि विशेषज्ञ मानते हैं कि—
“498A का इस्तेमाल जरूरी है, लेकिन इसमें सुधार की ज़रूरत है। पुलिस को हर केस में गिरफ़्तारी से पहले काउंसलिंग और जांच करनी चाहिए। वरना यह कानून भी अन्याय का हथियार बन जाएगा।”
🔸 अब क्या चाहते हैं केके धाकड़?
निष्पक्ष जांच और जल्द न्याय
झूठे केस की भरपाई के लिए कानून में संशोधन
पुरुषों के लिए भी हेल्पलाइन और मानसिक स्वास्थ्य सहायता
महिला कानूनों के दुरुपयोग पर रोक
🔴 अंत में…
498A टी कैफे कोई चाय की दुकान नहीं — यह एक अनकही लड़ाई का मोर्चा है।
यह उस समाज का आईना है जहां न्याय सिर्फ कहने भर के लिए है।
यह आवाज़ है उन लोगों की जो अब तक खामोश थे।