मध्यप्रदेश के जंगलों की पुकार: वंतारा से उम्मीदें, लेकिन ज़मीनी सच्चाई अब भी दर्द देती है (The call of the forests of Madhya Pradesh: Hopes from Vantara, but the ground reality still hurts)

मध्यप्रदेश — जिसे देश का टाइगर स्टेट कहा जाता है — वहां आज वन्यजीवों के लिए एक अदद रेस्क्यू सेंटर भी पर्याप्त नहीं है। बीते वर्षों में बाघों से लेकर भालुओं और मगरमच्छों तक घायल होते रहे, लेकिन उन्हें संभालने की व्यवस्थाएं या तो सीमित रहीं या नदारद। ऐसे में जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने गुजरात के वंतारा जैसे हाईटेक वाइल्डलाइफ सेंटर का मॉडल अपनाने की घोषणा की, तो जंगल में जैसे उम्मीद की सांस लौट आई। लेकिन सवाल यह है — क्या ये घोषणाएं सिर्फ कागज़ों तक सीमित रहेंगी, या सचमुच ज़मीन पर उतरेंगी?


🔍 सच्चाई: केवल एक ही रेस्क्यू सेंटर, वो भी सीमित

मध्यप्रदेश का इकलौता सरकारी वाइल्डलाइफ रेस्क्यू सेंटर भोपाल के वन विहार में है। यह भी मूल रूप से एक चिड़ियाघर है, जहाँ रेस्क्यू यूनिट काम चलाऊ रूप में है। न ICU, न MRI, न CT-Scan — घायल जानवरों को न तो वक्त पर जांच मिलती है और न इलाज। जब शेर घायल होता है, तो उसे 200 किमी दूर लाना पड़ता है — क्या यह जंगलराज्य की पहचान है?


🧭 सरकार ने क्या किया अब तक?

राज्य सरकार की कई घोषणाएं हुईं:

  • हर डिवीज़न में रेस्क्यू सेंटर बनाने की योजना
  • दो नए चिड़ियाघर, वेटरनरी कोर्स और हॉस्पिटल
  • 108 जैसी रेस्क्यू हेल्पलाइन, इको-टूरिज्म और पशु प्रशिक्षण केंद्र

पर हकीकत यह है कि इनमें से अधिकांश घोषणाएं अभी फाइलों से बाहर नहीं निकलीं। वन विभाग की मज़बूरी है — बजट की कमी, स्टाफ की भारी कमी और प्रशासनिक जटिलताएं।


🌿 वंतारा: जहाँ जानवरों का इलाज, सम्मान से होता है

गुजरात के जामनगर में वंतारा वन्यजीव पुनर्वास केंद्र सिर्फ एक आश्रयगृह नहीं — बल्कि 3000 एकड़ में फैला मेडिकल-एडवांस चमत्कार है। वहाँ ICU, हाइपरबैरिक चेंबर, वेंटिलेटर, CT-स्कैन, MRI सब है। यहाँ लाए गए विदेशी और भारतीय वन्यजीवों को फिर से जीने का मौका दिया जाता है।

CM मोहन यादव खुद वहाँ गए, देखा, समझा — और लौटकर ऐलान किया कि मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही नेटवर्क बनेगा। लेकिन क्या हमारे प्रशासन के पास नीयत और क्षमता दोनों हैं इसे ज़मीन पर लाने की?


💔 मर्म: घायल जानवरों की चीख कौन सुनेगा?

हर साल दर्जनों तेंदुए, सांभर, भालू और पक्षी मानव-वन संघर्ष में घायल होते हैं। गांवों में इन्हें जाल में फंसाकर पीटा जाता है या ट्रॉमा में छोड़ दिया जाता है। रेस्क्यू करने वाली टीमें सिर्फ भोपाल तक सीमित हैं। न कोई वन्यजीव एम्बुलेंस, न क्षेत्रीय डॉक्टर, न प्रशिक्षित टेक्नीशियन

जहाँ वंतारा में एक घायल जानवर को विशेषज्ञों की टीम मिलती है, वहां मध्यप्रदेश में कभी-कभी इलाज भी समय पर नहीं हो पाता।


📌 घोषणाओं से नहीं, ज़मीन से बदलेगी तस्वीर

वाइल्डलाइफ रेस्क्यू सिर्फ जंगल बचाने का काम नहीं — ये सभ्यता की कसौटी है। अगर बाघों की भूमि कहलाने वाला मध्यप्रदेश घायल तेंदुए तक को समय पर इलाज नहीं दे पाता, तो सारी उपलब्धियाँ अधूरी हैं।

सरकार ने दिशा सही पकड़ी है — पर अब स्पीड, सिस्टम और सदिच्छा की ज़रूरत है। वंतारा का सपना अगर यहां हकीकत बन जाए — तो यही होगा असली ‘वन्य न्याय’

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