विमान हादसे की साइट पर मोदी की विज़िट पर उठे सवाल, कैमरों की संख्या बनी बहस का मुद्दा

अहमदाबाद | 13 जून 2025
देश अभी भी 12 जून को हुए भीषण विमान हादसे के सदमे से बाहर नहीं आया है। Air India की फ्लाइट AI-171, जो अहमदाबाद से लंदन जा रही थी, टेक-ऑफ के चंद सेकंड बाद ही तकनीकी गड़बड़ी के चलते BJ मेडिकल कॉलेज हॉस्टल की इमारत से टकरा गई। हादसे में 265 से अधिक लोगों की जान गई, जिनमें ज़्यादातर छात्र और यात्री शामिल थे।
लेकिन जब 13 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्रैश साइट पर पहुंचे, तो मीडिया में जो दृश्य सबसे ज्यादा वायरल हुआ, वह था – वो खुद, एकदम स्पष्ट कैमरा फ्रेम में खड़े, विमान के क्षत-विक्षत टुकड़े को देख रहे हैं। दृश्य भावनात्मक था, लेकिन जिस तरह से इसे दर्जनों कैमरों से कैद किया गया, उसने पूरे देश में एक नई बहस को जन्म दिया: “ये सहानुभूति थी या शो?”
🎥 कैमरा एंगल्स की बाढ़
वायरल हो रहे फोटो और वीडियो में मोदी जी जिस अंदाज़ में खड़े हैं, जिस सटीक कोण से कैमरा उन्हें पकड़ रहा है – उसे लेकर सोशल मीडिया पर सैकड़ों सवाल उठे हैं।
कई पत्रकारों और सोशल मीडिया यूज़र्स ने सवाल उठाया है कि:
- “आपदा स्थल पर संवेदना ज़रूरी है, लेकिन 8–10 कैमरे एक साथ क्यों?”
- “हर कोण से ली गई फोटो का उद्देश्य क्या है?”
- “ये दौरा था या डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग?”
एक यूज़र ने लिखा – “Tragedy became a photoshoot – Tail in the wall, PM in the frame.”

📰 मोदी की PR मशीनरी पर पुराना आरोप
यह पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी की आपदा स्थल पर उपस्थिति को लेकर कैमरा और प्रचार का मुद्दा उठा है। इससे पहले भी:
- केदारनाथ यात्रा (2019) – बर्फबारी के बीच ध्यान मुद्रा की तस्वीरें।
- कोविड वैक्सीनेशन केंद्र दौरा (2021) – कैमरे के साथ हर मूवमेंट का लाइव कवरेज।
- पुलवामा श्रद्धांजलि (2019) – पूरी तरह कस्टम लाइटिंग और ग्राफिक क्वालिटी फोटोज़।
इन घटनाओं के दौरान भी विपक्ष ने सरकार पर आपदा और राष्ट्रीय दुख का “PR उपकरण” की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था।
🧭 सरकार का पक्ष
सरकार की ओर से कहा गया कि प्रधानमंत्री का दौरा बचाव कार्यों की समीक्षा, प्रभावित लोगों से संवाद, और मौके की गंभीरता को समझने के लिए था। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा:
“हर राष्ट्रीय संकट में प्रधानमंत्री की उपस्थिति आवश्यक होती है। कैमरा केवल दस्तावेज़ीकरण का माध्यम है।”
लेकिन असली सवाल यह है कि “कैमरे की मौजूदगी ज़रूरी थी या कैमरे का ‘प्रबंधन’?”
🔍 ज़मीनी हकीकत बनाम दृश्य प्रबंधन
जब PM मोदी हॉस्पिटल पहुंचे, तब भी हर क्षण को 4K कैमरों और DSLR फोटोग्राफरों ने कैप्चर किया। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ये सब कवरेज सामान्य सरकारी दस्तावेज़ीकरण होता, तो यह विवाद का विषय नहीं बनता। लेकिन जिस तरह से हर दृश्य “सुनियोजित” दिखा – खासकर वो क्षण जब पीएम सीधे विमान की पूंछ को देख रहे थे और कैमरा बिलकुल “right over-the-shoulder” फ्रेम में था – उसने सवाल खड़े किए हैं।
🗣️ विपक्ष के तीखे तेवर
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और TMC जैसे दलों ने इस घटना को “पीड़ा की राजनीति” करार दिया। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा:
“जब 265 लोग मारे गए हों, तब नेता का कैमरे में देखना क्या दर्शाता है? पीड़ितों की आँखों में देखिए, कैमरे में नहीं।”
📲 जनता भी बंटी हुई
सोशल मीडिया दो हिस्सों में बंट गया है –
- एक पक्ष कहता है कि “कम से कम मोदी आए तो सही, दूसरे नेता तो दूर-दूर तक नहीं दिखे।”
- वहीं दूसरा पक्ष कहता है, “मोदी आए ज़रूर, पर वो जनता के लिए नहीं, कैमरे के लिए आए।”
✅ कैमरे ज़रूरी हैं, पर ‘कैमरा भावुकता’ नहीं
एक राष्ट्रीय नेता की उपस्थिति लोगों को साहस देती है, यह निर्विवाद है। लेकिन जब उनकी उपस्थिति, दृश्य रचना, प्रकाश व्यवस्था और कैमरा एंगल्स से अधिक परिभाषित होने लगे – तो सवाल उठेंगे।
इस समय देश को ज़रूरत है गंभीरता, संवेदना और ज़मीनी बदलाव की – न कि एक और हाई-प्रोडक्शन विज़िट की।