जबलपुर, 19 जून, 2025: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक बेहद संवेदनशील मामले में केंद्र और राज्य सरकार से सख्त जवाब मांगा है। ये मामला उन गरीब आदिवासी और SC (अनुसूचित जाति) वर्ग की छात्राओं से जुड़ा है, जिन्हें रहने के लिए सरकारी हॉस्टल मिले थे, लेकिन उन्हीं हॉस्टलों में केंद्रीय विद्यालय की कक्षाएं चलाई जा रही हैं। कोर्ट ने इसे छात्राओं की निजता और सुरक्षा का सीधा उल्लंघन मानते हुए नोटिस जारी किया है।
असुरक्षित ‘पनाहगाह’: जब हॉस्टल बना ‘स्कूल’, बेटियां हुईं बेघर
सोचिए, जिन बेटियों ने बेहतर भविष्य और सुरक्षित माहौल की उम्मीद में अपने घर-परिवार को छोड़ा था, उन्हें छात्रावास में भी ‘पराये’ लोगों के साथ जगह बांटनी पड़ रही है। आदिवासी बहुजन अधिकार कल्याण संगठन द्वारा हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका (PIL) बताती है कि कैसे पिछले 18 सालों से, यानी 2007 से ही, जबलपुर के सरकारी आदिवासी बालिका छात्रावास और सरकारी अनुसूचित जाति बालिका छात्रावास के परिसर में केंद्रीय विद्यालय, गढ़ा, जबलपुर की कक्षाएं धड़ल्ले से चल रही हैं। हॉस्टल जो सिर्फ लड़कियों के लिए होता है, वहाँ स्कूल चलने से पुरुष कर्मचारी और छात्र खुलेआम आते-जाते हैं, जो इन किशोरियों की निजता को सीधे तौर पर भंग करता है।
कानून का मज़ाक और अनसुनी ‘पुकारें’: प्रशासन की ‘लापरवाही’ का दर्द
यह मामला सिर्फ जगह की कमी का नहीं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 (गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार) के सीधे उल्लंघन का है। याचिका में साफ कहा गया है कि जहाँ बेटियों को सुरक्षित महसूस करना चाहिए, वहाँ स्कूल चलाकर उनके मौलिक अधिकारों को कुचला जा रहा है। हॉस्टल की सीमित जगह में स्कूल चलने से कमरे कम पड़ रहे हैं, जिससे छात्राओं को भारी असुविधा होती है। दुखद बात यह है कि कुछ स्थानों पर तो उत्पीड़न के मामले तक सामने आए हैं, जो इस गंभीर स्थिति की भयावहता को और बढ़ा देते हैं।
याचिका लगाने वाले संगठन ने बताया कि उन्होंने इस गंभीर मुद्दे पर पहले भी कई बार अधिकारियों के सामने गुहार लगाई, शिकायतें भेजीं, और जबलपुर कलेक्टर ने तो हॉस्टल खाली करने का आदेश भी दिया था। लेकिन, किसी ने नहीं सुनी बेटियों की सुरक्षा और सम्मान की ‘पुकार’ को सरकारी फाइलों में दबा दिया गया, जिससे प्रशासन की घोर लापरवाही और संवेदनहीनता उजागर होती है।
हाईकोर्ट ने उठाया ‘कड़ा कदम’: इन जजों ने सुनी ‘दर्द भरी पुकार’
जब हर दरवाजा बंद हो गया, तब इन बेटियों के लिए न्याय की उम्मीद लेकर माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सर्राफ की बेंच सामने आई। इन जजों ने इस संवेदनशील मामले की गंभीरता को समझा और केंद्र सरकार, राज्य सरकार, और केंद्रीय विद्यालय संगठन के उपायुक्त व सहायक आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह कदम उन बेटियों के लिए एक बड़ी राहत है, जिनकी आवाज अब तक अनसुनी थी। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि 14 जुलाई 2025 से शुरू होने वाले हफ्ते में इस मामले की अगली सुनवाई होगी। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से सीधे निर्देश देने की मांग की है कि केंद्रीय विद्यालय हॉस्टल परिसर को तुरंत खाली करे।
भविष्य की चुनौती: क्या बेटियों को मिलेगा उनका ‘सुरक्षित ठिकाना’?
यह केवल कुछ कमरों या एक स्कूल के संचालन का सवाल नहीं है। यह उन हजारों बेटियों के भविष्य और उनके सम्मान का सवाल है, जो गरीबी और सामाजिक बाधाओं से लड़कर शिक्षा हासिल करने का सपना देखती हैं। एक सुरक्षित और गरिमामय माहौल ही उन्हें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकता है। क्या माननीय हाईकोर्ट का यह हस्तक्षेप इन बेटियों के छात्रावास को उनका ‘घर’ वापस दिला पाएगा, जहाँ वे बिना किसी डर या समझौते के अपने सपनों को पूरा कर सकें? पूरा देश अब न्यायपालिका की ओर देख रहा है, यह जानने के लिए कि क्या बेटियों की सुरक्षा और निजता को प्राथमिकता मिलेगी या सरकारी उदासीनता उन पर भारी पड़ेगी।