मोहर्रम जैसे पवित्र और संवेदनशील मौके पर जबलपुर की धरती पर जो कुछ हुआ, उसने न सिर्फ शहर को चौंकाया है, बल्कि प्रशासन की मुस्तैदी और खुफिया तंत्र पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। शहर के सबसे व्यस्त मालवीय चौक स्थित श्री विष्णु धाम मंदिर के प्रवेश द्वार के ठीक ऊपर, ‘प्रे फॉर फिलिस्तीन’ का एक बड़ा बैनर, जिस पर फिलिस्तीन का झंडा भी बना था, घंटों तक लहराता रहा। यह निंदनीय घटना उस समय घटी जब नीचे लंगर वितरण चल रहा था और धार्मिक सौहार्द का माहौल था। इस आपत्तिजनक प्रदर्शन ने अब दिल्ली तक हलचल मचा दी है, जिसके बाद पुलिस महकमे में हड़कंप है और खुद पुलिस अधीक्षक (SP) भी अपनी ‘लापरवाही’ के लिए जांच के दायरे में आ गए हैं।
धर्म की आड़ में सियासी खेल: खुलेआम प्रदर्शन, सोता रहा शहर का प्रशासन
सोचिए, शहर के हृदयस्थल पर, एक मंदिर के प्रवेश द्वार पर खुलेआम एक ऐसा बैनर प्रदर्शित होता है जो धार्मिक आयोजन के मंच से सीधे अंतरराष्ट्रीय राजनीति और एक संवेदनशील मुद्दे को जोड़ता है। यह कोई मामूली चूक नहीं, बल्कि शहर के सांप्रदायिक ताने-बाने को छेड़ने की एक सुनियोजित कोशिश प्रतीत होती है। क्या प्रशासन और उसकी खुफिया एजेंसियां इतनी लापरवाह हो गईं हैं कि उन्हें इतने बड़े और सार्वजनिक प्रदर्शन की भनक तक नहीं लगी? मोहर्रम जैसे मौकों पर जब चप्पे-चप्पे पर निगाह रखने की ज़रूरत होती है, तब यह सब घंटों तक चलता रहा। यह सिर्फ एक बैनर नहीं था; यह शहर की शांति और सद्भाव को चुनौती देने की एक दुस्साहसिक कार्रवाई थी। आखिर, प्रशासन की आंखें कब खुलेंगी?
विहिप का तीखा प्रहार: ‘पुलिस क्या कर रही थी?’ और प्रशासनिक विफलता की परतें
इस शर्मनाक घटना पर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के प्रांतीय सह-सचिव प्रदीप गुप्ता ने प्रशासन पर सीधा हमला बोला है। उन्होंने सवाल उठाया है कि जब देश के अन्य संवेदनशील शहरों जैसे भोपाल, इंदौर, उत्तर प्रदेश और मुंबई में ऐसी फिलिस्तीन समर्थक गतिविधियों पर पुलिस त्वरित और सख्त कार्रवाई करती है, तो जबलपुर में प्रशासन की यह ‘अंधेखी’ क्यों? मोहर्रम जैसे अति-संवेदनशील अवसर पर यह बैनर घंटों तक लगा रहा और किसी को कानो-कान खबर नहीं हुई। क्या यह महज एक इत्तेफाक था या प्रशासनिक और खुफिया तंत्र की घोर लापरवाही का नतीजा? क्या पुलिस का काम सिर्फ घटना घट जाने के बाद ‘जांच और कार्रवाई’ का रटा-रटाया बयान जारी करना रह गया है? जब SP संपत उपाध्याय को रात 10 बजे के करीब इस घटना की जानकारी मिली, तब जाकर पुलिस हरकत में आई और बैनर को आनन-फानन में हटाया गया। लेकिन, तब तक नुकसान हो चुका था, और शहर के माथे पर एक और सवालिया निशान लग चुका था।
दिल्ली तक पहुंची आंच, खुफिया तंत्र और एसपी की कुर्सी पर मंडराता खतरा
इस विवाद की गूंज अब जबलपुर की गलियों से निकलकर सीधे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली तक पहुंच चुकी है। सूत्रों के अनुसार, यह मामला अब सिर्फ एक स्थानीय घटना बनकर नहीं रह गया है; इसकी गंभीरता को दिल्ली में भी महसूस किया जा रहा है। इस पूरी घटना ने लोकल इन्फॉर्मेशन ब्यूरो की कार्यप्रणाली और जबलपुर पुलिस के समूचे खुफिया तंत्र की ‘विफलता’ पर सीधे सवाल खड़े कर दिए हैं। पुलिस विभाग के विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो, इस गंभीर लापरवाही में अब खुद पुलिस अधीक्षक (SP) भी अपनी ‘सक्रियता’ और ‘vigilance’ को लेकर जांच के दायरे में आ गए हैं। यह स्थिति इस बात का स्पष्ट संकेत है कि शहर में कानून-व्यवस्था और सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने में एक बड़ी चूक हुई है, जिसकी जिम्मेदारी अब आला अधिकारियों पर तय की जा रही है।
शहर के सद्भाव पर मंडराता खतरा: क्या ये सिर्फ शुरुआत है?
यह घटना केवल एक बैनर लगाने तक सीमित नहीं है; यह जबलपुर के सदियों पुराने सांप्रदायिक सद्भाव पर मंडराते एक गंभीर खतरे का संकेत है। आखिर, ऐसी अंतरराष्ट्रीय राजनीति को धार्मिक आयोजनों से जोड़ने की जुर्रत कहां से आई? क्या यह किसी बड़े एजेंडे का हिस्सा है, जो शहर की शांति को अस्थिर करना चाहता है? यह घटना एक कड़ा अलार्म है, जो प्रशासन को जगाने के लिए काफी होना चाहिए। अब सिर्फ प्रतिक्रियात्मक कदम काफी नहीं होंगे; एक मजबूत और प्रो-एक्टिव खुफिया तंत्र ही ऐसी नापाक कोशिशों को उनके पनपने से पहले ही कुचल सकता है, ताकि जबलपुर की शांति और भाईचारा अक्षुण्ण रहे।