बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन में विवाद: चुनाव आयोग ने आधार, मनरेगा और राशन कार्ड को नागरिकता का सबूत मानने से किया इनकार, दिल्ली तक असर

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चल रहे वोटर लिस्ट के गहन पुनरीक्षण (Intense Revision) में दस्तावेजों को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। चुनाव आयोग (EC) ने वोटर लिस्ट में नाम शामिल कराने के लिए आधार कार्ड, वोटर कार्ड, मनरेगा कार्ड और राशन कार्ड जैसे आम पहचान पत्रों को नागरिकता का प्रमाण मानने से इनकार कर दिया है, जिससे नागरिकों के सामने अपनी भारतीयता साबित करने की नई चुनौती खड़ी हो गई है।


क्यों हो रहा है गहन पुनरीक्षण?

संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत, वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने के लिए व्यक्ति का भारतीय नागरिक होना अनिवार्य है। इसी दायित्व के तहत चुनाव आयोग बिहार में यह गहन पुनरीक्षण कर रहा है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि केवल भारतीय नागरिकों के नाम ही लिस्ट में हों। इस प्रक्रिया में सभी नागरिकों को शामिल होना है; यहां तक कि जिनका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में पहले से है, उन्हें भी फिर से आवेदन करना होगा।


किसे साबित करनी है नागरिकता और कौन से दस्तावेज मान्य?

इस पुनरीक्षण में उन लोगों को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी, जिनका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं है। ऐसे लोगों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है:

  • 1987 से पहले जन्मे: सिर्फ भारत में जन्म साबित करना है।
  • 1987 से 2004 के बीच जन्मे: भारत में जन्म के साथ माता या पिता में से किसी एक का भारतीय नागरिक होना साबित करना होगा।
  • 2004 के बाद जन्मे: खुद के भारत में जन्म के साथ माता-पिता दोनों के भारतीय नागरिक होने का सबूत देना होगा।

चुनाव आयोग ने इन लोगों के लिए 11 तरह के दस्तावेज मान्य किए हैं, जिनमें पेंशन का कागज, सरकार द्वारा जारी पहचान पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट, निवास प्रमाण पत्र, वन अधिकार प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, एनआरसी, परिवार रजिस्टर का कागज या जमीन के कागज शामिल हैं।


आधार, वोटर कार्ड क्यों नहीं मान्य? आयोग का तर्क और अदालती फैसले

आयोग ने आधार कार्ड, पैन कार्ड, मनरेगा कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और राशन कार्ड जैसे आसानी से उपलब्ध पहचान पत्रों को लेने से मना कर दिया है। आयोग का स्पष्ट कहना है कि ये दस्तावेज केवल आपकी पहचान साबित करते हैं, आपकी नागरिकता नहीं।

सुप्रीम कोर्ट सहित देश की कई अदालतों ने अपने फैसलों में यह स्पष्ट किया है कि आधार कार्ड, पैन कार्ड, राशन कार्ड सिर्फ पहचान के सबूत हैं, नागरिकता के नहीं। UIDAI की वेबसाइट पर भी यह साफ लिखा है कि आधार संख्या केवल पहचान का प्रमाण है और यह धारक को नागरिकता या निवास का कोई अधिकार प्रदान नहीं करता। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इसी साल अप्रैल में दिल्ली पुलिस ने भी केंद्र सरकार के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि सत्यापन के दौरान कई विदेशी नागरिकों (विशेषकर रोहिंग्या शरणार्थियों) के पास पैन कार्ड, राशन कार्ड और आधार कार्ड पाए गए थे, इसलिए अब इन्हें भारत के नागरिक होने का सबूत नहीं माना जाएगा।


वोटर कार्ड पर असमंजस और बढ़ते सवाल

वोटर कार्ड को लेकर हालांकि थोड़ा असमंजस बना हुआ है। चुनाव आयोग ने इसे नागरिकता के सबूत के तौर पर खारिज किया है, लेकिन बीते सालों में कुछ हाई कोर्ट के फैसले आयोग के इस दावे पर सवाल उठाते हैं। 2020 में गुवाहाटी हाई कोर्ट ने माना था कि वोटर कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, वहीं 21 फरवरी 2020 को मुंबई की एक अदालत ने एक बांग्लादेशी होने के आरोपी को यह कहकर बरी कर दिया था कि उसके पास वोटर आईडी कार्ड है और यह उसकी भारतीय नागरिकता प्रमाणित करता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि आधार, पैन, ड्राइविंग लाइसेंस या राशन कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं कहा जा सकता, लेकिन वैध मतदाता पहचान पत्र भारतीय नागरिकता साबित कर सकता है।

बावजूद इसके, चुनाव आयोग ने बिहार वोटर लिस्ट के इंटेंस रिवीजन में वोटर कार्ड को नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेजों से बाहर कर दिया है। इस फैसले से प्रदेश में अन्य दस्तावेजों जैसे जाति और निवास प्रमाण पत्र बनवाने के लिए भारी अफरा-तफरी मची हुई है, और आम जनता के लिए अपनी नागरिकता साबित करना एक बड़ी चुनौती बन गया है।

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