जबलपुर स्कूल फीस विवाद में नया मोड़: छात्रा ने प्रताड़ना व RTE उल्लंघन का लगाया संगीन आरोप, स्कूल ने आरोपों को ‘निराधार’ बताते हुए पेश की अपनी सफाई

जबलपुर के मिसपा मिशन हायर सेकेंडरी स्कूल में फीस भुगतान को लेकर चल रहा विवाद अब गंभीर होता जा रहा है। एक ओर 10वीं कक्षा की छात्रा ने स्कूल प्रबंधन पर फीस न देने पर प्रताड़ना और शिक्षा के अधिकार (RTE) कानून के उल्लंघन का संगीन आरोप लगाया है, वहीं दूसरी ओर स्कूल ने इन सभी दावों को सिरे से खारिज करते हुए अपना विस्तृत जवाब जिला कलेक्टर को सौंपा है। यह मामला अब छात्रा के दर्दनाक आरोपों और स्कूल की सफाई के बीच फँस गया है, जिसने शिक्षा के अधिकार और निजी स्कूलों की जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।


छात्रा के दर्दनाक आरोप: RTE उल्लंघन सहित फीस के लिए अपमान और उत्पीड़न

महिमा शाक्या ने जिला कलेक्टर को भेजी अपनी शिकायत में जो आरोप लगाए हैं, वे बेहद विचलित करने वाले हैं:

RTE का खुला उल्लंघन
महिमा ने सबसे गंभीर आरोप लगाया है कि उनकी छोटी बहन तरिणी शाक्या, जो ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ (RTE) के तहत स्कूल में पढ़ रही है, उससे भी गैर-कानूनी तरीके से फीस की मांग की जा रही है। यह सीधे तौर पर एक ऐसे कानून का उल्लंघन है, जिसका उद्देश्य वंचित बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करना है।

आर्थिक तंगी और अपमान
महिमा के अनुसार, उनके पिता मजदूरी करते हैं और कोरोना महामारी के कारण उनकी आय प्रभावित हुई, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। इसी वजह से वे स्कूल की फीस किस्तों में जमा करने को मजबूर थे। फीस बकाया होने पर उसे बार-बार कक्षा से बेइज्जत करके बाहर निकाला जाता था और अपमानित किया जाता था।

प्रिंसिपल का अमानवीय रवैया और शारीरिक दंड
छात्रा का दावा है कि प्रिंसिपल अनुश्री श्रीवास्तव ने फीस के लिए उसके साथ मारपीट भी की। जब महिमा के माता-पिता इस समस्या पर बात करने स्कूल पहुँचे, तो प्रिंसिपल ने कथित तौर पर कई अन्य बच्चों के सामने ही उन्हें अपमानित किया। छात्रा के अनुसार, प्रिंसिपल ने कहा, “जब तुम मजदूरी करते हो तो मेरे स्कूल में बच्चों को पढ़ाते ही क्यों हो? मुझे सिर्फ फीस से मतलब है, आज ही फीस दो, वरना कल से बच्चे स्कूल मत भेजो।

आत्महत्या की चेतावनी

इस उत्पीड़न से परेशान होकर महिमा ने अपनी शिकायत में यह तक कहा कि यदि जल्द ही न्याय नहीं मिला तो वह आत्मदाह कर लेंगी, क्योंकि उनके पिता अत्यधिक तनाव में हैं और यह उनका बोर्ड परीक्षा का महत्वपूर्ण वर्ष है।

स्कूल का विस्तृत स्पष्टीकरण: ‘RTE सहित सभी आरोप बेबुनियाद, हमने हमेशा सहयोग किया’

मिसपा मिशन हायर सेकेंडरी स्कूल प्रबंधन ने जिला कलेक्टर को दिए अपने लिखित जवाब में महिमा शाक्या और उनके परिवार के सभी आरोपों को सिरे से नकार दिया है

RTE नियमों का पूर्ण पालन
आरटीई के छात्र से फीस लेने के आरोप को स्कूल ने “पूरी तरह निराधार” और मनगढ़ंत बताया है। स्कूल ने जानकारी दी कि तरिणी शाक्या (महिमा की बहन) का दाखिला पहले सामान्य श्रेणी में हुआ था। बाद में, स्कूल के सुझाव पर अभिभावकों ने 2019-2020 सत्र में उसे आरटीई योजना के तहत प्रवेश दिलाया था। स्कूल का दावा है कि उस समय से लेकर आज तक तरिणी से कोई फीस नहीं ली गई है और न ही वे आरटीई के तहत पढ़ने वाले किसी भी छात्र से फीस लेते हैं। यह स्पष्टीकरण सीधे तौर पर आरटीई उल्लंघन के आरोप का खंडन करता है।

किस्तों में भुगतान की सुविधा

स्कूल का दावा है कि उन्होंने पिछले पांच वर्षों से महिमा के परिवार को लगातार फीस किस्तों में जमा करने की सुविधा प्रदान की है। स्कूल के अनुसार, परिवार ने हर साल सिर्फ नाममात्र की राशि (जैसे कभी 2,000, कभी 3,000 रुपए) ही जमा की, जिससे पुरानी बकाया राशि हर नए शैक्षणिक सत्र में जुड़ती चली गई।

शिक्षा में कोई बाधा नहीं

प्रबंधन ने स्पष्ट किया है कि फीस बकाया होने के बावजूद, उन्होंने कभी भी महिमा की पढ़ाई में कोई बाधा नहीं डाली। उसे हर साल वार्षिक परीक्षा में बैठने दिया गया, उसका परिणाम तैयार किया गया और उसे हमेशा अच्छे अंकों के साथ अगली कक्षा में प्रोन्नत भी किया गया। स्कूल का कहना है कि छात्रा को शिक्षा से वंचित करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।

प्रताड़ना के आरोपों का खंडन

स्कूल ने जोर देकर कहा है कि फीस के लिए छात्रा को प्रताड़ित करने या मारपीट करने के आरोप पूरी तरह से गलत हैं। उनका तर्क है कि अभिभावकों को अपनी बकाया फीस की जानकारी थी और वे इस विषय पर स्कूल आकर बातचीत कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। स्कूल प्रबंधन का कहना है कि वे हमेशा आपसी बातचीत से मुद्दे को सुलझाने के पक्ष में थे।

सच्चाई की पड़ताल: अब जिला कलेक्टर के निर्णय का इंतजार, RTE कानून की कसौटी पर मामला

यह पूरा मामला अब आरोपों और दावों के टकराव का केंद्र बन गया है, जिसमें RTE जैसे संवेदनशील कानून के उल्लंघन का आरोप विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। एक ओर गरीब परिवार अपनी पीड़ा और मानसिक आघात की बात कर रहा है, वहीं दूसरी ओर स्कूल प्रबंधन अपने बचाव में वर्षों के सहयोग और नियमानुसार चलने का दावा कर रहा है। दोनों पक्षों की दलीलों में सीधा विरोधाभास है, खासकर प्रताड़ना, कक्षा से निकालने और आरटीई फीस जैसे मुद्दों पर। अब सबकी निगाहें जिला कलेक्टर पर टिकी हैं, जिन्हें दोनों पक्षों की दलीलों और उपलब्ध साक्ष्यों की गहनता से जांच कर सच्चाई का पता लगाना होगा। इस मामले में निष्पक्ष जांच और उचित कार्रवाई ही शिक्षा के अधिकार और निजी स्कूलों की जवाबदेही पर एक महत्वपूर्ण संदेश देगी।

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