ट्रक नंबर फर्जीवाड़े से हिला जबलपुर प्रशासन: अनाज मिलर्स की घेराबंदी शुरू, कलेक्टर ने कहा – “पारदर्शिता से जांच होगी, दोषी बख्शे नहीं जाएंगे”

घटनाक्रम की शुरुआत – एक ट्रक नंबर, कई रजिस्टरियां

मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले के सिहोरा क्षेत्र में संचालित मां भगवती इंडस्ट्रीज पर उस समय सवाल उठने लगे जब जिला प्रशासन को संदेहास्पद दस्तावेज हाथ लगे। इन दस्तावेजों में पाया गया कि MP22H0192 नंबर वाला एक ट्रक बार-बार अनाज के परिवहन के लिए उपयोग हुआ, जबकि जमीनी सच्चाई कुछ और ही थी। जांच में सामने आया कि उसी एक ट्रक नंबर को दिखाकर कई अलग-अलग दिनों में धान के ट्रांसपोर्टेशन का दावा किया गया, लेकिन उस अवधि में वह ट्रक वास्तव में सिर्फ एक बार सक्रिय पाया गया।

यह घोटाला सिर्फ एक ट्रक नंबर तक सीमित नहीं रहा। अन्य फर्जी ट्रक नंबरों और उनसे जुड़ी गेट पास एंट्रीज़ की पड़ताल में भी अनियमितता और फर्जीवाड़े के स्पष्ट संकेत मिले। यही से शुरू होती है जबलपुर के मिलर्स और जिला प्रशासन के बीच टकराव की कहानी।


प्रशासन का रुख सख्त – जांच का संचालन पारदर्शिता के साथ

जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने मीडिया को स्पष्ट तौर पर बताया कि यह जांच किसी राजनीतिक या व्यक्तिगत प्रेरणा से नहीं, बल्कि साक्ष्य और दस्तावेजों के आधार पर पूरी पारदर्शिता के साथ की जा रही है। उन्होंने कहा:

“यह केवल एक ट्रक नंबर की बात नहीं है। हम गेट पास, बिल, वाहन रजिस्ट्रेशन और मूवमेंट डेट्स जैसी हर एंट्री को क्रॉस-चेक कर रहे हैं। सत्य सामने लाया जाएगा और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।”

प्रशासन की इस पारदर्शी लेकिन सख्त जांच प्रक्रिया ने मिलर्स समुदाय में खलबली मचा दी है।


मिलर्स की सफाई – “गलती नहीं, तकनीकी असमंजस है”

मामले के सामने आने के बाद मिलर्स यूनियन और मां भगवती इंडस्ट्रीज़ के प्रतिनिधियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सफाई पेश की। उन्होंने कहा कि “यह सिर्फ एक तकनीकी त्रुटि है, जिसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है”। उनका कहना था कि रिकॉर्डिंग में नंबर दोहराव का कारण सिर्फ डेटा एंट्री में की गई मानवीय गलती है, न कि कोई जानबूझकर किया गया फर्जीवाड़ा।

लेकिन प्रशासन के अनुसार, सफाई सिर्फ एक ट्रक तक सीमित है, जबकि मामले में कई ट्रक नंबरों और गेट पासों की डुप्लिकेशन और झूठी एंट्री के स्पष्ट प्रमाण हैं। यह सिर्फ तकनीकी भूल नहीं बल्कि व्यवस्थित धोखाधड़ी की ओर इशारा करता है।


दस्तावेजी साक्ष्य – बिल, पास और रजिस्ट्रेशन में विसंगति

प्रशासन की विशेष टीम ने अब तक जिन दस्तावेजों की जांच की है, उनमें पाया गया कि:

  • एक ही ट्रक नंबर से एक ही दिन में अलग-अलग स्थानों पर परिवहन दिखाया गया
  • गेट पास जारी करने की तारीख और वास्तविक ट्रक मूवमेंट में मेल नहीं था।
  • कुछ ट्रक नंबर ऐसे भी पाए गए जिनका RTO रिकॉर्ड में कोई अस्तित्व ही नहीं था

इन तथ्यों के आधार पर प्रशासन का मानना है कि यह सिर्फ एक मिल की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम को गुमराह करने का एक संगठित प्रयास हो सकता है।


सुनवाई की प्रक्रिया – सबको मिलेगा न्यायिक अवसर

हालांकि मामला गंभीर है, फिर भी जिला प्रशासन ने कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए सभी मिलर्स को सुनवाई का अवसर देने का निर्णय लिया है। आगामी शनिवार और रविवार को जिला कार्यालय में प्रशासनिक जांच समिति के समक्ष मिलर्स को अपने दस्तावेजों और सफाई के साथ उपस्थित होना होगा

कलेक्टर दीपक सक्सेना ने कहा:

“हम किसी पर बिना सुने कार्रवाई नहीं करेंगे। लेकिन अगर किसी ने राज्य को धोखा देने की कोशिश की है, तो उनके खिलाफ कठोर कानूनी कार्यवाही की जाएगी।”


व्यापक प्रभाव – किसानों से उपभोक्ता तक

यह विवाद केवल मिलर्स और प्रशासन के बीच नहीं है। इसका असर उन लाखों किसानों और उपभोक्ताओं पर भी पड़ता है जो सरकारी खरीदी और वितरण प्रणाली पर निर्भर रहते हैं। अगर ट्रांसपोर्टेशन में गड़बड़ी होगी, तो:

  • किसानों को भुगतान में देरी हो सकती है
  • राशन दुकानों तक अनाज समय पर नहीं पहुंचेगा
  • बाजार में अनाज की कीमतों में अस्थिरता आएगी

इसलिए यह जांच सिर्फ एक मिल तक सीमित नहीं, बल्कि राज्य की खाद्य आपूर्ति व्यवस्था की साख से जुड़ा मुद्दा बन गया है।


विश्लेषण – तकनीकी चूक या संगठित भ्रष्टाचार?

यह सवाल अब ज़ोर पकड़ रहा है कि – क्या यह सिर्फ एंट्री की गलती है या मुनाफे के लिए योजनाबद्ध फर्जीवाड़ा?

विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि कई ट्रकों का एक जैसा नंबर और एक जैसे गेट पास दिखाए जा रहे हैं, तो यह घोर लापरवाही या जानबूझकर किया गया कृत्य है।


एक ट्रक से खुला पूरे सिस्टम का सच

जबलपुर में एक ट्रक नंबर की जाँच से शुरू हुआ मामला अब संपूर्ण खाद्यान्न वितरण प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर रहा है। जिला प्रशासन की भूमिका अब बेहद निर्णायक हो चुकी है — उन्हें न केवल सच्चाई सामने लानी है, बल्कि न्याय, पारदर्शिता और व्यवस्था पर जनता का भरोसा भी बहाल करना है

आगामी सुनवाई में मिलर्स अपनी बात रखते हैं या फंसते हैं — यह अगले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा। लेकिन इतना निश्चित है कि यह मामला अब सिर्फ एक जिले का नहीं, पूरे मध्यप्रदेश के प्रशासनिक ढांचे के लिए एक चेतावनी है।

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