जबलपुर, मध्य प्रदेश: न्याय के पवित्र मंदिर, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के गलियारों में इन दिनों एक ऐसा तूफान उठ खड़ा हुआ है, जिसने पूरे वकील समुदाय को झकझोर कर रख दिया है। एक तरफ हैं बार काउंसिल, जो वकीलों के मान-सम्मान और अनुशासन के संरक्षक हैं, और दूसरी तरफ हैं एक कद्दावर वरिष्ठ अधिवक्ता, जिन पर बार काउंसिल को खुलेआम “गुंडा काउंसिल” कहने का सनसनीखेज आरोप लगा है। इस आरोप के बाद, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार काउंसिल के अध्यक्ष धन्यकुमार जैन ने माननीय चीफ जस्टिस और अन्य न्यायाधीशों को एक विस्तृत शिकायत पत्र सौंपा है, जिसमें मांग की गई है कि आरोपी अधिवक्ता की वरिष्ठ अधिवक्ता पदवी की समीक्षा की जाए और यह परखा जाए कि क्या वे इस गरिमामय पद पर बने रहने योग्य हैं।
एक विदाई समारोह, जिसने सुलगा दी चिंगारी
यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ, जब हाईकोर्ट के एक सम्मानित न्यायाधीश, जस्टिस अरविंद सुश्रुत धर्माधिकारी का विदाई समारोह चल रहा था। यह एक भावुक और गरिमामय पल था, जहाँ हर वकील सम्मान और विनम्रता के साथ उपस्थित था। लेकिन, आरोपों के अनुसार, इसी पवित्र अवसर पर वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य संघी ने न्यायमूर्तियों के लिए आरक्षित सीट पर कब्जा जमा लिया। बार काउंसिल के अध्यक्ष धन्यकुमार जैन ने स्वयं हाथ जोड़कर उनसे अनुरोध किया कि वे पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता उमाकांत शर्मा के बगल में बैठ जाएँ। कल्पना कीजिए, एक अध्यक्ष अपने साथी अधिवक्ता से हाथ जोड़कर आग्रह कर रहा है! लेकिन, शिकायत बताती है कि अधिवक्ता संघी ने न केवल बात अनसुनी की, बल्कि पलटकर अध्यक्ष को अपशब्द कहे और चिल्लाते हुए समारोह स्थल से बाहर चले गए। यह व्यवहार, जिसने वहाँ मौजूद हर व्यक्ति को स्तब्ध कर दिया, क्या किसी भी सभ्य पेशे में स्वीकार्य है?
सोशल मीडिया पर ‘गुंडा काउंसिल’ का अपमान
मानसिक पीड़ा यहीं खत्म नहीं हुई। धन्यकुमार जैन का आरोप है कि इस घटना के बाद से वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य संघी लगातार सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर उन्हें व्यक्तिगत रूप से अपमानित करने वाले संदेश भेज रहे हैं। इन संदेशों में स्वयं को ‘हीरो’ बताना और अधिवक्ता संघ को ‘गुंडों की बार’ कहना, ये शब्द न केवल व्यक्ति विशेष की मानहानि करते हैं, बल्कि पूरे अधिवक्ता समुदाय और उसकी गरिमा को तार-तार कर देते हैं।
शिकायत पत्र में एक बेहद गंभीर आरोप है: “यह बार गुंडों की बार है, इसका अध्यक्ष गुंडा है। असली बार मेरे पिता स्व. जे. पी. संघी द्वारा स्थापित हाईकोर्ट एडवोकेट बार है, और मैं सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर इस बार की मान्यता समाप्त करवा दूंगा।” क्या यह एक अधिवक्ता का बयान है, जो संविधान और कानून की शपथ लेता है? यह एक सीधा हमला है, न केवल एक व्यक्ति पर, बल्कि उस संस्था पर भी, जो न्याय की नींव है।
क्या कोई बड़ी साजिश रची जा रही है?
डी. के. जैन ने अपनी शिकायत में एक और चौंकाने वाला दावा किया है। उन्होंने आशंका जताई है कि अधिवक्ता संघी कुछ “बार विरोधी सदस्यों” के साथ मिलकर किसी बड़ी घटना की साजिश रच सकते हैं। यह आरोप एक गंभीर संकेत देता है कि यह विवाद केवल व्यक्तिगत टकराव तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक व्यापक एजेंडा हो सकता है, जिसका उद्देश्य बार की एकता और प्रतिष्ठा को भंग करना है। न्यायालय से आग्रह किया गया है कि इस पूरे प्रकरण की गंभीरता से जांच की जाए और विचार किया जाए कि क्या आदित्य संघी अब भी वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने के योग्य हैं।
उच्च न्यायालयों तक पहुँची शिकायत की आग
यह मामला सिर्फ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट तक सीमित नहीं रहा है। इसकी गंभीरता को देखते हुए, शिकायत की प्रतिलिपि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बी. आर. गवई, जबलपुर हाईकोर्ट एडवोकेट बार एसोसिएशन और सीनियर एडवोकेट बार काउंसिल को भी भेजी गई है। यह दर्शाता है कि यह विवाद अब राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी बिरादरी का ध्यान खींच रहा है।
फीस लेकर काम न करने के गंभीर आरोप
मामले की गंभीरता तब और बढ़ जाती है, जब हाईकोर्ट के गलियारों में वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य संघी पर फीस लेने के बाद भी मामलों पर काम न करने के कई आरोप तैर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, एक जूनियर अधिवक्ता ने EOW का एक मामला संघी को दिया था, जिसमें EOW अधिकारियों ने मिलकर 95 हजार रुपये की फीस भरी थी। लेकिन, आरोप है कि इस मामले को लेने के बाद संघी ने न तो कोई अपील दायर की और न ही कोई आगे की कार्यवाही की। इसके बाद यह मामला सौंपने वाले अधिवक्ता ने इसकी शिकायत बार काउंसिल से की। हालांकि ‘द सूत्र’ इन चर्चाओं की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं करता है, लेकिन हाईकोर्ट के विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ऐसी कई शिकायतें बार काउंसिल तक पहुंची हैं।
यह पूरा प्रकरण मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के इतिहास में एक काला अध्याय जोड़ने की कगार पर है। एक तरफ न्याय की देवी है, और दूसरी तरफ, उस देवी के रक्षकों के बीच गहरा होता विवाद। क्या बार काउंसिल अपने गौरव को पुनः स्थापित कर पाएगा? क्या न्यायपालिका इस विवाद को सुलझाने और न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखने में सफल होगी? इन सवालों के जवाब का इंतजार पूरा देश कर रहा है।







