एक आपत्तिजनक टिप्पणी और फिर काली कोठरी का सन्नाटा
महाराष्ट्र के पुणे की एक कानून की छात्रा और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, शर्मिष्ठा पानोली, ने शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक वीडियो में कही गई उनकी कुछ बातें, उनके लिए कानूनी संकट बन जाएंगी। शुक्रवार को कोलकाता में उनकी गिरफ्तारी हुई है, और आरोप है एक अब-हटाए गए वीडियो में कथित सांप्रदायिक टिप्पणी करने और धार्मिक भावनाओं को गंभीर रूप से आहत करने का। एक आजाद युवा की दुनिया पलक झपकते ही बदल गई, और अब वह 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में है। सोशल मीडिया पर की गई एक पोस्ट जब धार्मिक आस्थाओं पर सीधे प्रहार करती है, तो उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, और यह मामला अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाओं पर एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है।
कानून का शिकंजा: जब शब्दों ने पार की सीमा
शर्मिष्ठा के वकील, मोहम्मद समीमुद्दीन, ने तुरंत उनकी जमानत के लिए अर्जी दी है, लेकिन कानून की प्रक्रिया अपने हिसाब से चलती है। कोलकाता पुलिस का कहना है कि यह मामला एक ऐसे इंस्टाग्राम वीडियो से जुड़ा है, जिसने “एक विशेष समुदाय की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर आहत किया।” पुलिस के मुताबिक, जब कानूनी नोटिस तामील नहीं हो सके क्योंकि शर्मिष्ठा और उनका परिवार “फरार” हो गया था, तो वारंट जारी किया गया और गुरुग्राम से उनकी गिरफ्तारी हुई। जब सोशल मीडिया पर व्यक्त किए गए विचार किसी समुदाय की आस्थाओं को सीधे तौर पर निशाना बनाते हैं और अपमानजनक होते हैं, तो उन्हें ‘अपराध’ की श्रेणी में रखा जा सकता है, खासकर जब इसके लिए विशिष्ट कानूनी प्रावधान मौजूद हों।
क्या सचमुच इतनी गंभीर थीं वो बातें? हाँ, शब्द चोट पहुँचाते हैं।
गिरफ्तारी का आधार बना वो अब-हटाया गया वीडियो, जिसमें शर्मिष्ठा कथित तौर पर एक पाकिस्तानी यूजर को जवाब दे रही थीं। उस यूजर ने सवाल किया था कि भारत ने बिना किसी कारण के पाकिस्तान पर गोलीबारी क्यों की। शर्मिष्ठा ने जो जवाब दिया, वह बेहद आपत्तिजनक था: “पहले, मुझे लगता था कि नबी भ्रामक थे क्योंकि उन्हें लगता था कि स्वर्ग में 72 हूरें उनका इंतजार कर रही होंगी, लेकिन यह महिला और भी भ्रामक है, उसे लगता है कि भारत ने बिना किसी कारण के गोलीबारी की। क्या आपने पहलगाम हमले और आपके राष्ट्र द्वारा प्रायोजित अन्य आतंकवादियों के बारे में सुना है? क्या हमें जवाबी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए? हम अब महात्मा गांधी के भक्त नहीं हैं?” इसके अलावा, उन पर अभद्र शब्दों के इस्तेमाल का भी आरोप है।
यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि “नबी भ्रामक थे” जैसे शब्द किसी भी धर्म के पैगंबर के लिए इस्तेमाल करना सीधे तौर पर धार्मिक भावनाओं को गहरी ठेस पहुँचाना है। यह न केवल अपमानजनक है बल्कि समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने की क्षमता भी रखता है। “72 हूरों” का उपहास करना भी धार्मिक आस्थाओं का मज़ाक उड़ाना है। ऐसे शब्द निश्चित रूप से इतने उग्र और आपत्तिजनक हैं कि एक छात्रा को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़े।
अभिव्यक्ति की आज़ादी और कानून की तलवार: कहाँ है जिम्मेदारी की रेखा?
पुलिस ने शर्मिष्ठा के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की कई गंभीर धाराओं के तहत FIR दर्ज की है, जिनमें धारा 196(1)(a) (धर्म, जाति, आदि के आधार पर शत्रुता को बढ़ावा देना), धारा 299 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), और धारा 353(1)(c) (सार्वजनिक उपद्रव उकसाना) शामिल हैं। ये धाराएं गंभीर हैं और दर्शाती हैं कि कानून ऐसी टिप्पणियों को हल्के में नहीं लेता।
अभिव्यक्ति की आजादी एक महत्वपूर्ण अधिकार है, लेकिन यह असीमित नहीं है। जब कोई व्यक्ति, खासकर एक कानून का छात्र और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, जानबूझकर ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है जो किसी धर्म के संस्थापक और मान्यताओं का अपमान करते हैं, तो यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग है। आज के डिजिटल युग में, जहाँ हर किसी के पास अपनी बात कहने का मंच है, वहाँ जिम्मेदारी की भावना और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। कानून की पतली रेखा वहीं खींची जानी चाहिए जहाँ से किसी की आस्था और सम्मान पर सीधा प्रहार शुरू होता है, जैसा कि इस मामले में प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है। शर्मिष्ठा के शब्दों ने स्पष्ट रूप से उस रेखा को पार किया है, जिसके कानूनी परिणाम उन्हें भुगतने पड़ रहे हैं।