जबलपुर, मध्य प्रदेश – जबलपुर में एक ऐसा सनसनीखेज मामला सामने आया है, जिसने केवल जबरन धर्मांतरण के गंभीर आरोपों को ही नहीं, बल्कि सत्ता और धन के कथित दुरुपयोग को भी बेनकाब कर दिया है। भारतीय सेना की एक सेवानिवृत्त कैप्टन आकांक्षा अरोरा ने अपने ससुर अखिलेश मेंबन, सास नीतू मेंबन और पति तनय मेंबन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इन आरोपों में धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने और उसके बाद अमानवीय प्रताड़ना देने का जिक्र है। इस शिकायत के बाद महिला थाना मदन महल में एफआईआर दर्ज कर ली गई है, लेकिन अब सवाल सिस्टम की निष्पक्षता पर उठ रहे हैं।
प्रेम विवाह की आड़ में धर्मांतरण की साजिश?
आकांक्षा की आपबीती विचलित करने वाली है। उन्होंने बताया कि 20 दिसंबर 2017 को उनकी शादी तनय मेंबन से हुई थी। लेकिन इस विवाह से पहले मेंबन परिवार ने एक ऐसी शर्त रखी, जिसने आकांक्षा के जीवन को पूरी तरह बदल दिया। उनसे स्पष्ट रूप से कहा गया कि यदि तनय से विवाह करना है, तो उन्हें ईसाई धर्म अपनाना होगा। भावनात्मक दबाव इतना गहरा था कि आकांक्षा ने 10 दिसंबर 2017 को, शादी से ठीक 10 दिन पहले, बड़ी ओमती स्थित हिंदी मेथोडिस्ट चर्च में अपना धर्म परिवर्तन कर लिया। उन्हें लगा कि यह उनके नए जीवन की शुरुआत है, लेकिन यह एक सुनियोजित जाल था।
प्रताड़ना की हदें पार, नौकरी तक छोड़ने को मजबूर
विवाह के कुछ ही समय बाद आकांक्षा का भ्रम टूट गया। उन्हें एहसास हुआ कि यह धर्मांतरण केवल एक दिखावा था, एक सोची-समझी रणनीति। ससुर अखिलेश मेंबन, सास नीतू मेंबन और पति तनय मेंबन ने मिलकर उन्हें मानसिक और शारीरिक तौर पर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। उनके धर्म को लेकर लगातार ताने कसे जाते, अपमानजनक बातें कही जातीं। यह मानसिक यंत्रणा इतनी बढ़ गई कि एक सशक्त आर्मी कैप्टन को अपनी प्रतिष्ठित नौकरी तक छोड़नी पड़ी। 25 दिसंबर 2020 को उन्हें ससुराल से निकाल दिया गया। दो साल तक उन्होंने अपने माता-पिता के साथ रहकर भी इस रिश्ते को बचाने की कोशिश की, लेकिन 14 अगस्त 2023 को जब वह दोबारा ससुराल गईं, तो उनके साथ मारपीट की गई और फिर धर्म को लेकर अभद्र टिप्पणियां की गईं। अंततः, न्याय के लिए उन्होंने पुलिस का दरवाजा खटखटाया।
अस्पताल में ‘पैदल आए, व्हीलचेयर पर बैठे’ – रसूख का खुला प्रदर्शन।
इस मामले में सबसे चौंकाने वाला पहलू तब सामने आया, जब पुलिस अखिलेश मेंबन को मेडिकल जांच के लिए अस्पताल लेकर पहुंची। शहर के सरकारी अस्पतालों में जहां सामान्य और आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को व्हीलचेयर या स्ट्रेचर जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है, वहीं मेंबन अस्पताल के अंदर पैदल चलकर दाखिल हुए, लेकिन परिसर में पहुँचते ही उन्हें तुरंत एक व्हीलचेयर उपलब्ध करा दी गई! यह तस्वीर उस व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है, जो दर्शाती है कि धन और सत्ता का रसूख कैसे आम नागरिकों के लिए बने नियमों को धता बता सकता है। एक आरोपी को ऐसी वीआईपी सुविधा क्यों मिली, जबकि वह चलने-फिरने में पूरी तरह सक्षम था? यह सवाल अस्पताल प्रशासन और पुलिस दोनों पर उठता है।
विवादों के ‘किंगपिन’ अखिलेश मेंबन और धर्मांतरण गिरोह की आशंका
अखिलेश मेंबन का नाम पहले भी कई विवादित मामलों से जुड़ा रहा है। जबलपुर कलेक्टर द्वारा शिक्षा माफिया पर की गई कार्रवाई के दौरान जॉय स्कूल ट्रस्ट से जुड़े करोड़ों के भ्रष्टाचार, विदेशी यात्राओं और महंगी गाड़ियों की खरीद के मामले उनके नाम आए थे। इतना ही नहीं, उन्होंने पूर्व में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम पर भी आपत्तिजनक टिप्पणी कर समाज की धार्मिक भावनाओं को आहत किया था।
अब जब उनके अपने परिवार की बहू ने धर्मांतरण और प्रताड़ना का आरोप लगाया है, तो यह केवल एक पारिवारिक विवाद तक सीमित नहीं रह जाता। पुलिस ने अखिलेश मेंबन, नीतू मेंबन और तनय मेंबन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 115(2), 351(2) और मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 की धारा 3 और 5 के तहत मामला दर्ज किया है।इस घटना के साथ ही, अधारताल थाना क्षेत्र से एक और धर्मांतरण का मामला सामने आया है, जहाँ महाराजपुर पटेल नगर में बड़ी संख्या में महिलाओं को ईसाई धर्म की शिक्षा देने की सूचना पर विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने हंगामा किया है। ये लगातार सामने आ रहे मामले इस ओर इशारा करते हैं कि जबलपुर में एक संगठित धर्मांतरण गिरोह सक्रिय हो सकता है, जिसकी जड़ें गहरे तक फैली हुई हैं।