जबलपुर, 30 जून, 2025: मध्य प्रदेश से एक अत्यंत शर्मनाक और हृदय विदारक खबर सामने आई है, जहाँ उन मासूम दिव्यांग बच्चों के नाम पर करोड़ों रुपये का घोटाला किया गया, जिनकी उम्मीदें ‘मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना’ से जुड़ी थीं। यह योजना गरीब और बेसहारा बच्चों को सुनने की क्षमता लौटाने के नेक उद्देश्य से शुरू की गई थी, लेकिन अब आरोप है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) जबलपुर कार्यालय में एक संविदा अधिकारी, सुभाष शुक्ला, ने इसमें बड़े पैमाने पर सरकारी धन का दुरुपयोग किया है। इस मामले ने तब तूल पकड़ा जब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई और कोर्ट ने इस गंभीर प्रकरण का संज्ञान लिया है।
मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना: नेक मकसद पर घोटाले का ग्रहण
मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के तहत, सरकार कॉक्लियर इंप्लांट्स और उसके बाद होने वाले फॉलो-अप चेकअप का खर्च उठाती है, ताकि सुनने में अक्षम बच्चे सामान्य जीवन जी सकें। लेकिन आरोप है कि NHM जबलपुर कार्यालय में तैनात संविदा अधिकारी सुभाष शुक्ला ने इसी योजना को अपनी काली कमाई का जरिया बना लिया।
करोड़ों का फर्जीवाड़ा: कैसे बच्चों के इलाज के नाम पर हुई लूट?
उन्होंने कथित तौर पर दिव्यांग बच्चों के “फॉलो-अप चेकअप” और “कॉक्लियर इंप्लांट्स” के नाम पर ऐसी संस्थाओं को लाखों-करोड़ों रुपये का भुगतान करा दिया, जहाँ वास्तव में कोई भी उपचार या फॉलो-अप सेवा प्रदान की ही नहीं गई। बच्चों के माता-पिता ने भी इस बात की पुष्टि की है कि उनके बच्चों को सरकार द्वारा कोई फॉलो-अप नहीं मिला और दस्तावेजों पर उनके हस्ताक्षर जाली थे। इस फर्जीवाड़े में भोपाल स्थित दिव्या एडवांस ईएनटी संस्था जैसी कुछ इकाइयां भी शामिल पाई गईं।
CAG ने 2019 में ही खोली थी पोल, फिर भी 5 साल तक दबा रहा मामला
इस घोटाले की पोल तो बहुत पहले ही खुल सकती थी। दरअसल, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की 2019 की ऑडिट रिपोर्ट में ही इसका विस्तृत खुलासा हो गया था। CAG ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि अकेले दिव्या एडवांस ईएनटी संस्था को बिना किसी वास्तविक सेवा के 2.27 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, जिससे सरकारी खजाने को सीधा नुकसान हुआ। हैरत की बात यह है कि CAG की यह विस्तृत रिपोर्ट उपलब्ध होने के बावजूद, स्वास्थ्य विभाग ने इस गंभीर मामले को बीते पांच सालों से, यानी 2019 से लेकर अब तक, पूरी तरह दबाकर रखा।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उठाया परदा, हाई कोर्ट तक पहुंचा न्याय का संघर्ष
इस दबे हुए घोटाले को सामाजिक कार्यकर्ताओं शैलेंद्र बारी और सत्येंद्र कुमार यादव ने अपनी अथक प्रयासों से उजागर किया। उन्होंने सूचना के अधिकार (RTI) का प्रयोग कर महत्वपूर्ण दस्तावेज जुटाए और सीधे मुख्यमंत्री से इस मामले की शिकायत की, जिसके बाद यह संवेदनशील मुद्दा सार्वजनिक पटल पर आया। अब यह मामला मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका के माध्यम से पहुंच चुका है, और कोर्ट ने इसकी गंभीरता को समझते हुए संज्ञान ले लिया है।
सबूतों के बावजूद आरोपी पर मेहरबानी: क्यों नहीं हुई FIR, क्यों बची नौकरी?
सबसे अधिक चौंकाने वाला पहलू यह है कि इस गंभीर आरोप के बावजूद, जिसमें CAG की रिपोर्ट भी एक पुख्ता सबूत है, मुख्य आरोपी सुभाष शुक्ला के खिलाफ अभी तक कोई प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज नहीं की गई है। इतना ही नहीं, उनकी संविदा सेवा भी समाप्त नहीं की गई है, और वह अभी भी पद पर बने हुए हैं। सुभाष शुक्ला पर सिर्फ इस योजना में ही नहीं, बल्कि RBSK (राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम) के तहत ऑडियो सिस्टम के लिए आवंटित धन के गबन और फर्जी अनुभव प्रमाण पत्रों के आधार पर अपनी नौकरी हासिल करने जैसे अन्य गंभीर आरोप भी हैं। यह स्थिति स्वास्थ्य विभाग के भीतर जवाबदेही और पारदर्शिता पर बड़े सवाल खड़े करती है। आशंका जताई जा रही है कि यह घोटाला केवल जबलपुर तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके तार पूरे मध्य प्रदेश राज्य में फैले हो सकते हैं, जिससे सैकड़ों मासूम बच्चों का भविष्य दांव पर लगा होगा। यह एक ऐसा अपराध है, जो सिर्फ पैसों का नहीं, बल्कि उन बच्चों की उम्मीदों और सपनों का भी है, जिन्हें समाज के सबसे वंचित तबके से होने के कारण विशेष सहायता की आवश्यकता थी।