‘जनसेवा’ का नया अवतार | जबलपुर के अस्पताल में ‘हिंसक प्रदर्शन’ के बाद ‘गुंडागर्दी’ करने वाले नेता बने ‘पीड़ितों के मसीहा’, CCTV ने खोली पोल

जबलपुर में यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई के कुछ ‘जनसेवकों’ ने जनता को यह सिखाया है कि न्याय पाने का उनका अपना ही एक ‘अनोखा’ तरीका है। पहले अस्पताल में घुसकर ‘अन्याय’ का बदला ‘अपने हाथों’ से लिया, और जब सीसीटीवी में पूरी ‘वीरगाथा’ कैद हो गई, तो अगले ही दिन बड़े शान से खुद को ‘पीड़ितों का मसीहा’ बताते हुए ज्ञापन देने पहुंच गए। वाह रे नेताओं की लीला, कहाँ गुंडागर्दी और कहाँ जनता की सेवा का ढोंग!


अस्पताल का आरोप और CCTV फुटेज की ‘जीवंत गवाही’:

अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, कहानी की शुरुआत एक मरीज, विष्णु रजक, के इलाज से हुई। परिजनों का आरोप था कि आयुष्मान कार्ड के बावजूद अस्पताल ने ₹20,000 की ‘अतिरिक्त दक्षिणा’ मांग ली। बस फिर क्या था, यूथ कांग्रेस के ‘दिलेर’ नेता विजय रजक और एनएसयूआई के ‘कर्मठ’ जिला अध्यक्ष सचिन रजक अपने ‘भक्तों’ के साथ अस्पताल पहुंचे ‘न्याय’ दिलाने। अस्पताल के ‘बेकार’ लगे सीसीटीवी कैमरों ने इस ‘महान कार्य’ की पूरी फिल्म रिकॉर्ड कर ली, जिसके कुछ अंश विस्तार से यूँ हैं:

डॉक्टर के चैंबर में ‘शांति वार्ता’:

फुटेज में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि यह समूह सीधे डॉ. अंकित अग्रवाल के चैंबर में दाखिल होता है। अंदर जाते ही ‘शांतिपूर्ण वार्ता’ शुरू होती है, लेकिन कैमरे बताते हैं कि बहस देखते ही देखते ‘हाथों की भाषा’ में बदल गई। ऐसा लगा मानो ‘जनसेवक’ डॉक्टर को ‘लोकतांत्रिक तरीके’ से समझा रहे हों कि ‘अतिरिक्त दक्षिणा’ लेना कितना ‘अशोभनीय’ है।

आईसीयू में ‘जनजागरण’:

इसके बाद, ‘न्यायकर्ता’ समूह आईसीयू (गहन चिकित्सा इकाई) में जा पहुंचा। फुटेज में देखा जा सकता है कि उन्होंने नर्सों सहित स्टाफ के साथ ‘जनजागरण’ के नाम पर अभद्र व्यवहार किया। मरीज और स्टाफ के बीच भय का माहौल साफ दिख रहा था, क्योंकि ‘जनसेवक’ अपने ‘मिशन’ में लगे थे।

वार्ड बॉय की ‘सेवा’: फुटेज में वार्ड बॉय दिवाकर मिश्रा को ‘जनसेवा’ के नाम पर जबरन खींचकर ले जाते और उसे ‘प्यार’ से पीटते हुए साफ देखा जा सकता है। बेचारा वार्ड बॉय अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहा था, पर ‘जनसेवकों’ को लगा कि यह भी ‘व्यवस्था सुधार’ का एक हिस्सा है।

महिला सुरक्षाकर्मी को ‘मार्गदर्शन’:

एक महिला सुरक्षा गार्ड, पुष्पा, ने जब इन ‘महान कार्यों’ में खलल डालने की कोशिश की, तो उसे भी ‘धक्का-मुक्की का आशीर्वाद’ मिला और साथ में ‘मौखिक मार्गदर्शन’ भी दिया गया। ऐसा लगा मानो उसे बताया जा रहा हो कि ‘जनसेवा’ के रास्ते में खड़ा होना कितना ‘अलोकतांत्रिक’ है।

अस्पताल प्रशासन ने इन ‘अमूल्य’ फुटेज के साथ पुलिस में ‘नासमझी’ भरी शिकायत दर्ज करा दी, जिसके बाद विजय रजक और उनके ‘शिष्यों’ के खिलाफ ‘तुच्छ’ धाराओं में एफआईआर दर्ज हो गई।


नेता जी का नया अवतार: ‘पीड़ित’ से ‘आंदोलनकारी’ तक

लेकिन नेताजी, आखिर नेताजी ठहरे! विजय रजक का कहना है कि उन्होंने जो किया, वह तो ‘बदतमीजी’ का जवाब था। उनका तर्क है कि डॉक्टर ने उनसे बदतमीजी की और ‘बेवकूफ’ बाउंसर को बुलाकर उन्हें चैंबर से बाहर निकलवा दिया। रजक के मुताबिक, उनके अन्य साथियों के आने के बाद ‘बाउंसर की ही बदतमीजी’ के चलते ही उसकी ‘पिटाई’ हुई – मानो बाउंसर की पिटाई एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी, हिंसा नहीं। उन्होंने यह भी दावा किया कि मौके पर पहुंची पुलिस भी ‘डॉक्टर की गलती’ मान चुकी थी, इसीलिए उन्होंने उस वक्त कोई ‘छोटी-मोटी’ शिकायत नहीं की।


गिरते ही संभाल लिया ‘न्याय’ का झंडा:

सबसे दिलचस्प मोड़ तब आया जब अस्पताल में तोड़फोड़ और मारपीट के ठीक अगले दिन, विजय रजक और उनके साथी अचानक ‘जनसेवक’ बन गए। जैसे ही वे अस्पताल के खिलाफ सीएमएचओ को ज्ञापन देने पहुंचे, अस्पताल ने तुरंत उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी। रजक का आरोप है कि यह एफआईआर अस्पताल ने अपनी गलतियों से बचने और उनके ‘आंदोलन’ को दबाने के लिए दर्ज करवाई है – खुद के खिलाफ हुई कार्रवाई को भी ‘बचाव की रणनीति’ करार दिया जा रहा है।


ज्ञापन: जनसेवा का मुखौटा या खुद का बचाव?

विजय रजक के हस्ताक्षर वाले इस ‘ऐतिहासिक’ ज्ञापन में, इंडियन यूथ कांग्रेस ने अस्पतालों द्वारा ‘खुलेआम लूट’ और ‘आयुष्मान योजना में धांधली’ जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। ज्ञापन में ‘कठोर कार्रवाई’ की मांग की गई है और चेतावनी दी गई है कि यदि ऐसा नहीं हुआ, तो ‘जनहित’ में ‘जनआंदोलन’ किया जाएगा। यह ‘आंदोलन’ ठीक उनकी अपनी कथित हिंसा के अगले दिन आ रहा है, जो यह सोचने पर मजबूर करती है कि यह वाकई मरीजों के हक की लड़ाई है, या अपनी करतूतों से बचने का एक ‘नाटकीय’ मंचन?

पुलिस अब इस ‘ड्रामा’ की जांच कर रही है। लेकिन इस पूरे प्रहसन ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि हमारे कुछ नेता कानून के दायरे में नहीं, बल्कि अपनी ‘अहंकार’ की दुनिया में जीते हैं, जहाँ वे खुद ही जज होते हैं, खुद ही अपराधी और खुद ही अपने बचाव के लिए ‘जनता की आवाज’ का ढोंग रचते हैं। जनता बस दर्शक बनकर ये तमाशा देखती रह जाती है।

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