MP हाई कोर्ट का सख्त फैसला: राष्ट्रीय महत्व के स्मारक पर उर्स-नमाज की अनुमति नहीं, ASI करेगा सुरक्षा

मोहम्मद गौस दरगाह मामला: अदालत ने संरक्षित विरासत के संरक्षण को दी प्राथमिकता, याचिका खारिज

जबलपुर, मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में राष्ट्रीय महत्व के संरक्षित स्मारक मोहम्मद गौस दरगाह पर धार्मिक आयोजन, जैसे कि उर्स (जलसा) और नमाज अदा करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और जिला प्रशासन का यह प्रमुख कर्तव्य है कि वे इन प्राचीन धरोहरों को पूरी सावधानी और सख्ती के साथ सुरक्षित रखें।


क्या था पूरा मामला?

यह पूरा विवाद मोहम्मद गौस दरगाह के सज्जादानशीन (जो खुद को कानूनी वारिस बताते हैं) की याचिका से शुरू हुआ था। उनका दावा था कि दरगाह में पिछले 400 सालों से उर्स और नमाज सहित कई धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते आ रहे हैं।

लेकिन, जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने दरगाह को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया, तो इन गतिविधियों पर रोक लग गई या उन्हें बहुत सीमित कर दिया गया।

2024 में, याचिकाकर्ता ने ASI से दरगाह में उर्स करने की इजाजत मांगी। हालांकि, ASI ने यह कहकर अनुमति देने से मना कर दिया कि यह जगह प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत एक संरक्षित स्मारक है। नियमों के मुताबिक, इसे सिर्फ सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही खोला जा सकता है, और ऐसे किसी भी आयोजन की अनुमति नहीं दी जा सकती। ASI ने यह भी चेताया था कि 1958 के अधिनियम की धारा 30 और 1959 के नियमों के नियम 8 के तहत ऐसा कोई भी कार्य करने पर दो साल की जेल और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

इसके बाद, याचिकाकर्ता ने सितंबर 2024 में हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी। इस याचिका को एकल पीठ ने भी खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने खंडपीठ के सामने अपील दायर की थी।


कोर्ट ने क्यों नहीं दी इजाजत?

हाई कोर्ट की एकल पीठ के जस्टिस आनंद पाठक और जस्टिस हृदेश ने इस मामले पर गौर किया और कहा: “वास्तव में यह ASI और जिला प्रशासन का कर्तव्य है कि वे राष्ट्रीय महत्व के इस स्मारक को अत्यंत सावधानी और सख्ती से संरक्षित करें, ताकि इतिहास और संस्कृति को अपने दायरे में समेटे ऐसे प्राचीन स्मारक को भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा जा सके।

अदालत ने यह भी साफ किया कि अगर याचिकाकर्ता को उर्स और नमाज की अनुमति दी जाती है, तो स्मारक को नुकसान हो सकता है। जैसे कि टेंट लगाने, कीलें ठोकने और लाइटें लगाने से ढांचे को खराबी, प्रदूषण और अपवित्रता का सामना करना पड़ सकता है।

कोर्ट ने यह भी ध्यान दिलाया कि प्राचीन स्मारक अधिनियम की धारा 19 संरक्षित क्षेत्रों में संपत्ति अधिकारों के उपयोग पर रोक लगाती है। साथ ही, कोर्ट ने पाया कि दरगाह के स्वामित्व से जुड़े मुद्दे को निचली अदालतों ने पहले ही खारिज कर दिया था।

इन्हीं सभी तर्कों को ध्यान में रखते हुए, हाई कोर्ट ने याचिका में कोई दम नहीं पाया और माना कि ASI ने याचिकाकर्ता के आवेदन को बिल्कुल सही खारिज किया था। इसी के साथ, खंडपीठ ने अपील को भी खारिज कर दिया।

यह फैसला इस बात पर जोर देता है कि देश की प्राचीन विरासत और ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण कितना महत्वपूर्ण है, खासकर जब धार्मिक या अन्य आयोजनों से उनके अस्तित्व को खतरा हो।

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