MP हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: अदालत को ही अंधेरे में रखने वाला क्लर्क दंडित, जजों ने कहा – ‘निर्देशों की जानबूझकर अवहेलना नहीं चलेगी

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने न्यायपालिका के भीतर पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। गुरुवार (19 जून) को हाईकोर्ट ने जिला न्यायालय के एक एग्जीक्यूटेंट क्लर्क के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई को बरकरार रखा है। इस क्लर्क पर आरोप था कि उसने हाईकोर्ट द्वारा मांगी गई बेहद ज़रूरी जानकारी देने में न सिर्फ देरी की, बल्कि निर्देशों की ‘जानबूझकर अवहेलना’ भी की। यह फैसला बताता है कि अब अदालती प्रक्रियाओं में भी ‘लापरवाही’ बर्दाश्त नहीं की जाएगी।


अदालत में देरी, कर्मचारी पर भारी: हाईकोर्ट ने क्यों लिया सख्त रुख?

यह मामला न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के न्यायालय में कार्यरत एक एग्जीक्यूटेंट क्लर्क से जुड़ा है, जिसने उच्च न्यायालय द्वारा मांगी गई अनिवार्य जानकारी देने में हद दर्जे की देरी की। इस देरी को हाईकोर्ट ने न केवल प्रशासनिक चूक, बल्कि आधिकारिक निर्देशों की स्पष्ट अवहेलना माना है। कोर्ट का यह सख्त रुख न्यायपालिका की आंतरिक कार्यप्रणाली में दक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए बेहद अहम है।


‘निर्देशों की जानबूझकर अवहेलना’: क्या था पूरा मामला?

इस अनुशासनात्मक कार्रवाई की जड़ें जून 2016 से जुड़ी हैं। उस समय, petitioner क्लर्क को हाईकोर्ट रजिस्ट्री द्वारा निर्धारित समय-सीमा के भीतर एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जमा करनी थी। यह रिपोर्ट महिला, बच्चे, वरिष्ठ नागरिक और अन्य कमजोर समूहों से जुड़े आपराधिक मामलों के आंकड़ों से संबंधित थी, जिसका उपयोग मुख्य न्यायाधीशों के एक महत्वपूर्ण सम्मेलन में किया जाना था। शुरुआत में क्लर्क ने अधूरी और गलत प्रारूप में जानकारी भेजी। इसके बाद, उन्हें ईमेल, फोन कॉल और यहां तक कि अदालत के कर्मचारियों द्वारा व्यक्तिगत रूप से भी कई बार रिमाइंडर भेजे गए। लेकिन, बार-बार याद दिलाने के बावजूद, क्लर्क अद्यतन और सही रिपोर्ट भेजने में लगातार विफल रहा। हैरत की बात यह है कि सही प्रारूप में रिपोर्ट तब जमा की गई, जब उसे इस मामले में पहले ही निलंबित किया जा चुका था।


विभागीय जांच और ‘नरम’ सज़ा: कैसे तय हुआ दंड?

इस गंभीर लापरवाही के बाद क्लर्क के खिलाफ एक विस्तृत विभागीय जांच शुरू की गई। इस जांच में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश और कार्यालय अधीक्षक सहित पांच गवाहों की गवाही दर्ज की गई। जांच रिपोर्ट में क्लर्क के खिलाफ लगाए गए आरोप को पुख्ता सबूतों के साथ सही पाया गया। प्रारंभिक अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने क्लर्क के दो वेतन वृद्धियों को संचयी प्रभाव (यानी भविष्य की वेतन वृद्धि पर भी असर) के साथ रोकने का दंड लगाया था। हालांकि, बाद में अपीलीय प्राधिकरण ने इसमें थोड़ी नरमी दिखाते हुए संचयी घटक को हटा दिया, जिससे क्लर्क को कुछ राहत मिली।


हाईकोर्ट की ‘दो टूक’: ‘मनमानी’ नहीं चलेगी, ‘संवैधानिक गरिमा’ का सवाल

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सर्राफ की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए क्लर्क के आचरण पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि petitioner का आचरण न केवल ‘अधीनस्थ’ (अपने वरिष्ठों की अवज्ञा) था, बल्कि यह “बार-बार दिए गए आधिकारिक निर्देशों की जानबूझकर की गई अवहेलना को दर्शाता है।”

न्यायालय ने क्लर्क के इस बचाव को भी सिरे से खारिज कर दिया कि उसे रिपोर्ट के प्रारूप की जानकारी नहीं थी या उसका निर्देशों का उल्लंघन करने का कोई इरादा नहीं था। जजों ने कहा कि बार-बार रिमाइंडर और व्यक्तिगत रूप से संपर्क करने के बावजूद ऐसा बहाना अस्वीकार्य है। हाईकोर्ट ने यह भी दोहराया कि अनुशासनात्मक मामलों में न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित होता है। न्यायालय एक अपीलीय प्राधिकरण की तरह काम नहीं करता और यदि विभागीय जांच के निष्कर्ष ठोस सबूतों पर आधारित हों, तो उच्च न्यायालय साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन नहीं करता है। कोर्ट ने पाया कि जांच प्रक्रिया पूरी तरह वैध थी, निष्कर्ष विश्वसनीय सामग्री पर आधारित थे, और अपीलीय प्राधिकरण ने पहले ही काफी नरमी दिखाई थी, इसलिए दंड पूरी तरह से दुराचार के अनुपात में था और इसमें किसी भी हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं थी।


अदालती प्रक्रिया में देरी का गंभीर परिणाम: ये फैसला क्यों है अहम?

यह फैसला केवल एक कर्मचारी को दंडित करने भर का नहीं है। यह न्यायपालिका के भीतर एक कड़ा संदेश है कि अदालती प्रक्रियाओं में किसी भी स्तर पर होने वाली देरी या लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। timely और सटीक जानकारी, खासकर कमजोर वर्गों से संबंधित मामलों में, न्यायिक प्रणाली के कुशल कामकाज और महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों के लिए अत्यंत आवश्यक होती है। इस तरह की देरी न केवल प्रशासनिक अक्षमता दिखाती है, बल्कि न्याय मिलने में भी बाधा बन सकती है। यह निर्णय न्यायिक कर्मचारियों को अपनी जिम्मेदारियों के प्रति अधिक जवाबदेह और चौकस रहने के लिए प्रेरित करेगा।

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