जबलपुर हाईकोर्ट ने पुलिस को लगाई ज़बरदस्त फटकार बोले – ‘फ़र्ज़ी कागज़ बनाए’, DGP करो जांच

जबलपुर, 2 जुलाई, 2025: शहर में पुलिस का एक बड़ा कारनामा सामने आया है, जिसे जानकर आप चौंक जाएंगे। जबलपुर हाईकोर्ट ने पुलिसवालों को ज़बरदस्त फटकार लगाई है। बात 2017 के एक रोड एक्सीडेंट की है, जिसमें पुलिस ने बड़ी लापरवाही तो की ही, बल्कि ऐसा लगता है कि जानबूझकर कुछ गड़बड़ भी की। कोर्ट ने साफ कहा कि FIR (फ़र्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट) दर्ज करने में तीन महीने की देरी हुई और उसे ग़लत थाने में भी लिखवा दिया गया। अब पुलिस के सबसे बड़े अफ़सर, DGP (पुलिस महानिदेशक) को इस पूरे मामले की गहराई से जांच करने का आदेश दिया गया है।


ये है पूरा मामला: रईसों को फंसाने वाला गैंग और एक संदिग्ध हादसा

ये सारा मामला रूपंश खत्री और उनके भाई साहिल खत्री की याचिका से जुड़ा है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि जबलपुर में एक ऐसा गैंग चल रहा है जो अमीर लोगों को झूठे सड़क हादसों में फंसाकर उनसे या उनकी बीमा कंपनी से जबरदस्ती पैसा वसूलता है। ये केस भी कुछ ऐसा ही है। बात 26 मार्च 2017 की है, जब जबलपुर के डुमना रोड पर एक बाइक का कथित एक्सीडेंट हुआ था। इस मामले में गोरबाजार थाने में FIR (नंबर 60/2017) दर्ज हुई और पुलिस ने चार्जशीट भी फाइल कर दी। रूपंश की बाइक (Honda CBR, MP20-MV-8612) भी इसमें शामिल बताई गई थी।


FIR दर्ज करने में हुई ज़बरदस्त देरी और सामने आए फ़र्ज़ी कागज़ात

हादसा तो 26 मार्च 2017 को हुआ था, लेकिन पहली शिकायत (देहाती नालिश) क़रीब तीन महीने बाद, 19 जून 2017 को रंझी थाने में दर्ज हुई। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि ये पूरी FIR ही मनगढ़ंत कहानी है, जिसे इस तीन महीने की देरी को छिपाने के लिए बनाया गया था।

पुलिस ने अपनी सफाई में कहा कि एक्सीडेंट वाली जगह किस थाने में आती है, इसे लेकर गोरबाजार, रंझी और सिविल लाइंस थानों के बीच झगड़ा था। पुलिस ने बताया कि शिकायतकर्ता ने 31 मार्च 2017 को SP (पुलिस अधीक्षक) जबलपुर से शिकायत की थी, जिसके बाद SP ने 1 अप्रैल 2017 को उसे गोहलपुर थाने में कार्रवाई के लिए भेजा।


हाईकोर्ट ने पुलिस की दलीलों को किया खारिज, SP की भूमिका पर भी सवाल

हाईकोर्ट ने पुलिस के सारे दावों को सिरे से खारिज कर दिया और कई चौंकाने वाली बातें सामने रखीं:

  • SP पर सवाल: कोर्ट को हैरानी हुई कि SP ने शिकायतकर्ता को गोहलपुर थाने क्यों भेजा, जबकि ये इलाका बाकी तीनों थानों से बिल्कुल अलग है। कोर्ट ने SP के इस काम को “एक पूरी तरह से लापरवाह, गैर-जिम्मेदार और निकम्मा अधिकारी” का सबसे अच्छा उदाहरण बताया।
  • पहला फ़र्ज़ी दस्तावेज़: कोर्ट ने पुलिस केस डायरी में 31 मार्च 2017 की एक चिट्ठी की फोटोकॉपी देखी, जिस पर SP के दस्तख़त नहीं थे। फोटोकॉपी के किनारे ऐसे कटे हुए थे मानो जानबूझकर दस्तख़त छुपाए गए हों। इस पर SP ऑफिस की आवक संख्या और तारीख (1 अप्रैल 2017) तो थी, लेकिन आवक क्लर्क के शुरुआती दस्तख़त भी गायब थे। ये चिट्ठी पुलिस ने खुद कोर्ट को नहीं दी, बल्कि जब कोर्ट ने केस डायरी मंगाई तब उसमें मिली।
  • एक और फ़र्ज़ी दस्तावेज़: कोर्ट को केस डायरी में 1 जून 2017 की एक और चिट्ठी मिली, जिसे घमापुर थाने ने SP को भेजा था। इस चिट्ठी में SP के एक फ़र्ज़ी (जो कभी लिखा ही नहीं गया) पत्र का हवाला दिया गया था। कोर्ट ने घमापुर थाने को “मामले में कूदने वाला पांचवां पुलिस स्टेशन” बताया और कहा कि ये सारे कागज़ पुलिस ने अपनी देरी छिपाने के लिए ही बनाए थे।

मेडिकल रिपोर्ट भी शक के घेरे में, पुलिस की जांच पर सवाल

हाईकोर्ट ने सिर्फ कागज़ात पर ही नहीं, मेडिकल रिपोर्ट पर भी शक जताया। शिकायतकर्ता ने खुद 5 मई 2017 को जामदार अस्पताल की एक मेडिकल रिपोर्ट पुलिस को दी थी। कोर्ट ने पाया कि पुलिस ने इसे न तो अस्पताल से लिया और न ही इसके लिए कोई कागज़ (जब्ती ज्ञापन) बनाया। ये सिर्फ एक पर्ची थी, जिसमें डॉ. शिरिष नाइक ने कलाई में “हड्डी टूटने की संभावना” जताई थी। तो वहीं, सरकार ने अपने जवाब में गलत तारीख (3 जनवरी 2017) बता दी, जो घटना से भी पहले की थी।


हाईकोर्ट का कड़ा आदेश: DGP करेंगे जांच, गुनहगारों पर गिरेगी गाज

इन सब बातों को देखकर, हाईकोर्ट ने साफ-साफ कहा कि पुलिसवालों ने “अपनी गलती को छिपाने की एक भयानक कोशिश” की है। कोर्ट ने DGP (पुलिस महानिदेशक) को आदेश दिया है कि वे इस पूरे मामले की शुरुआती जांच करें। DGP को दो महीने के अंदर इस मामले पर फैसला लेना होगा। अगर किसी पुलिसवाले ने कोई अपराध या गलत काम किया है, तो उस पर पुलिस विभाग की तरफ से और कानूनी तौर पर भी सख्त कार्रवाई होगी। अगर DGP दो महीने में फैसला नहीं लेते, तो याचिकाकर्ता उन पर अवमानना का मुक़दमा भी कर सकते हैं। हाईकोर्ट का ये सख्त कदम पुलिस महकमे में जवाबदेही तय करने की दिशा में एक बड़ा संदेश है।

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