जबलपुर: ₹500 करोड़ के बाद भी डूबे शहर के सपने, बारिश में जब घरों में घुसता है पानी… तब चीखती है महापौर के दावों की हकीकत

जबलपुर नगर निगम ने ₹500 करोड़ की भारी-भरकम लागत से सड़कों और नालियों का निर्माण किया है, दावा है कि इससे शहर जलभराव की समस्या से पूरी तरह मुक्त हो गया है। महापौर का कहना है कि 80% समस्या खत्म हो चुकी है और अगले साल तक शहर शत-प्रतिशत ‘वॉटरलॉगिंग फ्री’ हो जाएगा। लेकिन, इन ‘आश्वासनों’ के बीच, जब बारिश की बूंदें ज़मीन पर गिरती हैं, तो शहर के कुछ कोनों में लोगों के चेहरों पर डर और बेबसी साफ़ दिख जाती है, क्योंकि पानी अब भी उनके घरों में घुसकर हर उम्मीद को बहा ले जाता है।


महापौर के ‘जलमुक्त जबलपुर’ वाले दावे: सबकुछ ‘ऑल इज़ वेल’

महापौर बड़े आत्मविश्वास के साथ शहर में जलभराव की स्थिति में अभूतपूर्व सुधार की बात करते हैं। वह बताते हैं कि पहले जहां हर बारिश में जलभराव की 100-150 शिकायतें आती थीं, अब ये गिनती घटकर महज़ 10-15 पर सिमट गई है। सिविक सेंटर, शिवनगर, बिलहरी और तिलहरी जैसे वो इलाके, जो पहले तालाब बन जाते थे, वहाँ अब लोगों को सुकून है। महापौर का यह भी दावा है कि 100-150 ऐसे स्थान हैं, जहाँ पहले पानी भरता था, लेकिन इस बार नहीं भरा।

उनका कहना है कि अगर कहीं थोड़ी-बहुत जलभराव की शिकायत आती भी है, तो हेल्पलाइन पर शिकायत मिलने के 1 घंटे के भीतर उसे दुरुस्त कर दिया जाता है। महापौर यह भी बताते हैं कि पिछले दो वर्षों से व्यापारियों की दुकानों में पानी नहीं भरा है, जिससे उन्हें बड़ा नुकसान होने से राहत मिली है। वह यहाँ तक कहते हैं कि जबलपुर अब जल संकट से मुक्त है और हर घर में नर्मदा जल पहुँच रहा है। बची-खुची समस्या के लिए मध्य प्रदेश शासन और केंद्र सरकार से ₹400 करोड़ की अतिरिक्त राशि मांगी गई है।


जब दावों की पोल खोलती है जमीनी हकीकत: घरों में घुसता पानी का दर्द

महापौर के इन ‘आश्वस्त’ कर देने वाले दावों के ठीक उलट, जब बादल गरजते हैं और बारिश होती है, तो जमीनी स्तर पर स्थितियाँ कुछ और ही कहानी बयां करती हैं। कुछ ही दिन पहले, पूर्व विधानसभा क्षेत्र के कई वार्डों में लोगों के घरों में पानी ऐसे घुस गया, जैसे उनका घर नहीं, कोई खुला नाला हो। किचन से लेकर बेडरूम तक, ज़िंदगी का हर कोना पानी से सराबोर था, और रातें डर में कटीं।

महापौर ने इन घटनाओं का कारण बंद नालों और छोटी जगहों को बताया, जहाँ पानी रुककर एक ‘बांध’ जैसा बना लेता है और फिर घरों में धावा बोल देता है। यह बात सुनने में भले ही तकनीकी लगे, पर उन परिवारों का दर्द कहां छिपता है, जिनका सामान पानी में तैर रहा था और जिन्हें अपने ही घर में बेबसी महसूस हो रही थी। शांतनगर, ट्रांसपोर्ट नगर, राधाकृष्ण वार्ड और तिलहरी में चैतन्य सिटी जैसे इलाके आज भी बारिश आने पर कलेजा थाम लेते हैं। इन इलाकों में अभी भी गंभीर जलभराव की समस्या लोगों को डरा रही है।


₹500 करोड़ खर्च पर गंभीर सवाल: जनता को कब मिलेगी पूरी राहत?

यह सबसे बड़ा सवाल है कि ₹500 करोड़ जैसी भारी-भरकम राशि खर्च करने के बाद भी, यदि जबलपुर के कुछ हिस्सों में लोगों को अपने घरों से भागना पड़ रहा है, तो इस परियोजना की सफलता पर संदेह होता है। क्या सचमुच ‘कुछ ही जगहों’ पर पानी भरता है, या यह सिर्फ आंकड़ों का खेल है? क्या जिन सड़कों और नालियों पर इतना पैसा बहाया गया, वो केवल कुछ इलाकों के लिए थीं?

इस बारिश में भी क्या उन लोगों को फिर से अपनी छत के नीचे ‘जलसमाधि’ का डर सताएगा, जिनके घरों में पानी भर जाता है? नगर निगम के दावों की चमकदार तस्वीर और शहर के कुछ हिस्सों की काली हकीकत के बीच का यह अंतर, जबलपुर की जनता के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है, जिसकी कीमत वे हर बारिश में चुकाते हैं। प्रशासन को इस पर गंभीरता से ध्यान देने की ज़रूरत है ताकि दावों और हकीकत का फासला मिट सके।

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