क्यों अदालत ने इस मामले में सीधा दखल नहीं दिया?
जबलपुर, मध्य प्रदेश: एमपी हाई कोर्ट ने एक याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें मांग की गई थी कि मुस्लिम समुदाय और इस्लाम के खिलाफ फैलाई जा रही कथित भ्रामक खबरों और लेखों पर रोक लगाई जाए। याचिका में यह भी कहा गया था कि ‘लव जिहाद’ जैसे शब्दों का गलत इस्तेमाल कर सांप्रदायिक नफरत फैलाने वाले हिंदी अखबारों के संपादकों पर केस दर्ज किए जाएं।
क्या था मामला जिसने कोर्ट तक दस्तक दी?
याचिकाकर्ता मारूफ अहमद खान का कहना था कि वे मुस्लिम समुदाय से आते हैं और इन गलत खबरों से उनकी धार्मिक भावनाएं बहुत आहत हुई हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस बारे में उन्होंने पुलिस में शिकायत भी की थी, पर कोई सुनवाई नहीं हुई। इसी वजह से वे कोर्ट पहुंचे थे।
कोर्ट ने क्यों नहीं मानी याचिका?
न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की बेंच ने याचिका को देखा और साफ कहा कि ये मामला जनहित याचिका (PIL) जैसा है, और ऐसे में सीधे ‘परमादेश’ (यानी कोर्ट का सीधा आदेश) जारी नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता के पास और भी कानूनी रास्ते खुले हैं।
अब पीड़ितों के पास क्या विकल्प हैं?
हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को बताया कि अगर उनकी शिकायत पर पुलिस या किसी और जगह सुनवाई नहीं हुई है, तो उनके पास दूसरे मजबूत विकल्प मौजूद हैं। कोर्ट ने सलाह दी है कि वे बड़े अधिकारियों से सीधे मिल सकते हैं या फिर मजिस्ट्रेट के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 156(3) या 200 (या नए कानूनों के तहत उनके बराबर वाली धाराएं) का इस्तेमाल किया जा सकता है।
इस फैसले से यह साफ हो गया है कि ऐसे मामलों में कोर्ट सीधे तौर पर दखल नहीं देगा, लेकिन प्रभावित लोगों के लिए कानून में दूसरे रास्ते हमेशा खुले हैं। अब देखना होगा कि याचिकाकर्ता इन नए सुझावों पर कैसे आगे बढ़ते हैं।