केलौ नदी किनारे 295 परिवारों के बेदखली का दर्द, प्रशासन के वादों पर उठते सवालरायगढ़, छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में केलो नदी के किनारे प्रस्तावित मरीन ड्राइव परियोजना अब स्थानीय निवासियों के लिए दर्दनाक विस्थापन का पर्याय बन गई है। शनिवार (14 जून 2025) सुबह से ही, भारी विरोध और मानवीय अपीलों के बावजूद, नगर निगम और पुलिस प्रशासन ने तोड़फोड़ की क्रूर कार्रवाई जारी रखी है। इस परियोजना की कीमत सैकड़ों परिवारों के उजड़े आशियानों और अनिश्चित भविष्य के रूप में चुकानी पड़ रही है, जिसने पूरे कयाघाट क्षेत्र को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया है।
अंधेरे में थमाए गए नोटिस, सुबह उजाड़ा गया संसार
नगर निगम ने शहर की महत्वाकांक्षी मरीन ड्राइव परियोजना के लिए कयाघाट क्षेत्र के 100 से अधिक “अवैध” घरों को तोड़ने का नोटिस जारी किया है। इस कार्रवाई की जद में 295 परिवार आ रहे हैं। पहले चरण में, 20 घरों को ध्वस्त किया जा रहा है, और शेष मकानों को भी चरणबद्ध तरीके से गिराया जाएगा।स्थानीय निवासियों का आरोप है कि उन्हें बिना किसी पूर्व सूचना या पर्याप्त समय दिए, अचानक बेदखल किया जा रहा है। शुक्रवार रात (13 जून 2025) को सैकड़ों मोहल्लेवासियों ने कलेक्टर बंगले का घेराव किया और जमकर विरोध प्रदर्शन किया। उनका दर्द तब और गहरा हो गया जब उन्हें बताया गया कि “रात 9:30 बजे नोटिस थमाकर अगले दिन सुबह 8 बजे तक घर खाली करने को कहा गया।” यह अमानवीय फरमान उन परिवारों के लिए एक सदमे जैसा था, जो पीढ़ियों से इन स्थानों पर अपना जीवन बिता रहे थे।
जेसीबी के सामने महिलाएं, पुलिस का बल प्रयोग और गिरफ्तारियां
शनिवार सुबह (14 जून 2025) जब नगर निगम के अधिकारी पुलिस बल और बुलडोजर के साथ पहुंचे, तो विरोध की आग भड़क उठी। अपनी आखिरी उम्मीद के साथ, कुछ महिलाएं तो पोकलेन मशीन (जेसीबी) के ठीक सामने बैठ गईं, जो उनके घरों को तोड़ने के लिए लाई गई थीं। यह मार्मिक दृश्य उनकी बेबसी और अपने आशियानों को बचाने की अंतिम कोशिश को दर्शाता था।पुलिस ने बलपूर्वक इन महिलाओं को हटाया, और इस दौरान पूर्व महिला कांग्रेस अध्यक्ष बरखा सिंह सहित कुछ महिलाओं को गिरफ्तार भी कर लिया गया, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई। प्रशासन की इस सख्त कार्रवाई ने पूरे क्षेत्र में भय और अनिश्चितता का माहौल बना दिया है। न्याय की गुहार लगाते हुए, प्रभावित लोगों ने मंत्री ओपी चौधरी के बंगले के बाहर भी नारेबाजी की, लेकिन उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला।
प्रशासन के वादे: “घर के बदले घर, जमीन के बदले जमीन”
मौके पर पहुंचे पुलिस अधीक्षक और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों ने लोगों को शांत करने के लिए “सभी प्रभावितों को घर के बदले घर और जमीन के बदले जमीन” दिए जाने का आश्वासन दिया। इसी आश्वासन के बाद कुछ प्रदर्शनकारी अस्थायी रूप से शांत हुए और वापस लौटे। प्रशासन का कहना है कि ये सभी घर सरकारी भूमि पर अवैध अतिक्रमण हैं, जिन्हें हटाया जाना आवश्यक है।
विकास बनाम मानवीय त्रासदी: एक बड़ा प्रश्नचिह्न
यह घटना रायगढ़ में विकास परियोजनाओं और मानवीय अधिकारों के बीच एक तीखे टकराव को दर्शाती है। एक तरफ शहरी विकास का ढोल पीटा जा रहा है, तो दूसरी तरफ सैकड़ों बेघर हुए परिवार अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता के दलदल में धकेल दिए गए हैं। क्या प्रशासन अपने वादों पर खरा उतरेगा? क्या इन विस्थापित परिवारों को वास्तव में सम्मानजनक पुनर्वास मिल पाएगा? ये सवाल रायगढ़ के इस दर्दनाक मरीन ड्राइव के निर्माण के साथ-साथ तैरते रहेंगे।