‘सफाई’ का नया कीर्तिमान| रांझी नाले से ‘कीचड़’ निकाला, सड़कों पर बिछा दिया ‘स्वच्छता’ का जाल: जनता परेशान, नगर निगम ‘शान से बेखबर’

जबलपुर, 22 जून, 2025: जबलपुर के रांझी इलाके में नगर निगम की ‘दूरदर्शिता’ का एक अद्भुत नमूना देखने को मिल रहा है। चंद्रशेखर वार्ड और लाला लाजपत राय वार्ड के बीच स्थित रांझी नाले की ‘महान सफाई’ के बाद, जो ‘कचरा’ निकाला गया, उसे सड़क पर ही ‘जनता के दर्शन’ के लिए छोड़ दिया गया। अब मानसून की पहली ही ‘फुहार’ ने इस ‘स्वच्छता अभियान’ के मलबे को कीचड़ के एक विशाल दलदल में बदल दिया है, जिससे राहगीरों और स्थानीय निवासियों का जीवन ‘नरक’ बन गया है। वाह रे नगर निगम की ‘काबिले तारीफ’ लापरवाही, जिसने ‘सफाई’ को ही ‘आफत’ बना दिया!


‘सफाई’ का अनोखा ‘उपलब्धि’ या जनता पर ‘अत्याचार’?

जब रांझी नाले की सफाई का बीड़ा उठाया गया, तो जनता को लगा कि शायद अब उन्हें राहत मिलेगी। लेकिन, नगर निगम के ‘बुद्धिजीवियों’ ने नाले से निकाला गया मलबा और कचरा सड़क के किनारे ही ‘सहेज’ कर रख दिया। शायद उन्हें लगा होगा कि यह अपने आप ‘गायब’ हो जाएगा, या फिर जनता खुद ही इसे ‘संभाल’ लेगी। मानसून की पहली बारिश क्या आई, यह ‘संग्रहीत कचरा’ गलकर एक बदबूदार, फिसलन भरे कीचड़ में तब्दील हो गया है, जिसने सड़क को एक ‘दुःस्वप्न’ बना दिया है।


‘विकास’ कीचड़ में सना: नगर निगम की दूरदर्शिता का कमाल!

अब आलम यह है कि जिस सड़क पर कभी लोग आसानी से चलते थे, वह अब ‘कलाबाजी’ का मैदान बन गई है। राहगीरों को कीचड़ से सनते हुए, फिसलन से बचते हुए निकलना पड़ रहा है – यह नगर निगम की ‘दूरदर्शिता’ का ही कमाल है कि उन्होंने सफाई के बाद कचरे को ‘अंतिम यात्रा’ तक नहीं पहुंचाई! ऊपर से इस ‘स्वच्छता के अवशेष’ से उठती दुर्गंध ने पूरे इलाके को ‘खुशबूदार’ बना दिया है, जिससे साँस लेना भी दुश्वार हो गया है। स्थानीय निवासियों का दर्द है कि नगर निगम को सफाई के तुरंत बाद कचरे का उचित निपटान करना चाहिए था, लेकिन ‘आम जनता’ की परेशानियों से ‘खास’ लोगों को क्या फर्क पड़ता है?


जनता की ‘दर्दभरी’ अपील: क्या ‘सफाई’ के बाद ‘सज़ा’ मिलेगी?

क्षेत्रीय निवासियों की आँखों में आँसू और आवाज में दर्द है। उनका कहना है कि इस ‘नगरायी उपलब्धि’ के कारण खासकर बच्चों और बुजुर्गों को भारी परेशानी हो रही है। बच्चे फिसलकर गिर रहे हैं, और बुजुर्गों के लिए तो यह सड़क ‘एवरेस्ट’ पर चढ़ने जैसी हो गई है। उन्होंने नगर निगम से ‘हाथ जोड़कर’ विनती की है कि जल्द से जल्द इस ‘विकास के कीचड़’ को हटाया जाए और भविष्य में ऐसी ‘अद्वितीय’ लापरवाही न बरती जाए। जनता पूछ रही है – क्या ‘सफाई’ के नाम पर अब ‘सज़ा’ मिलेगी, और क्या इस ‘कीचड़ भरी सच्चाई’ पर कोई ‘सुध’ लेने वाला भी है? या फिर ‘स्वच्छता अभियान’ के नाम पर यह ‘सफाई’ सिर्फ ‘फाइलों’ तक ही सीमित रहेगी?

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