सिहोरा के लोगों का धैर्य अब जवाब दे चुका है। दो दशकों से ज़िला बनने के इंतजार में चुनावी वादों के जाल में उलझे सिहोरावासियों का गुस्सा बुधवार को जबलपुर की सड़कों पर फूट पड़ा। भाजपा के रानीताल स्थित संभागीय कार्यालय के बाहर शंख, मंजीरे और घंटों के साथ ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन हुआ। लेकिन इस बार केवल आवाज़ें नहीं गूंजीं — दीवारों पर चिपके पोस्टरों ने पूरे राजनीतिक विमर्श को झकझोर दिया।
पोस्टरों पर लिखा था:
“कौन हैं शिवराज, स्मृति, उमा और संतोष बरकड़े?”
ये सिर्फ सवाल नहीं था — ये पिछले 20 सालों के जख्म थे, जो अब नासूर बनकर बाहर आ रहे हैं।
20 सालों की ‘राजनीतिक नींद’ को झकझोरने की कोशिश
सिहोरा को जिला बनाने की मांग कोई नई नहीं। ये कहानी 2001 में शुरू हुई थी जब तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इस दिशा में कदम बढ़ाया। लेकिन 2003 में आचार संहिता ने प्रक्रिया पर ब्रेक लगा दिया। उसके बाद सत्ता बदली, सरकारें बदलीं, पर वादा जस का तस लटका रहा।
इस लंबे इंतजार के बीच हर चुनाव में नेताओं के भाषणों में “सिहोरा जिला” ज़रूर सुनाई दिया, पर हर बार नतीजा वही — सिर्फ वादे, कोई कार्रवाई नहीं।
पोस्टर-पॉलिटिक्स: नेताओं को याद दिलाए गए वादे
रानीताल भाजपा कार्यालय की दीवारों पर जो पोस्टर चिपकाए गए, वे महज़ कागज के टुकड़े नहीं थे — ये जनता की स्मृति में दर्ज वादों का आईना थे:
- 🗓️ 10 नवम्बर 2023 – शिवराज सिंह चौहान से ‘लक्ष्य जिला सिहोरा आंदोलन समिति’ की फोन पर बातचीत:
“भूल हो गई है, भाजपा को जिताएं — जीतते ही सिहोरा को जिला बनाएंगे।” - 🗓️ 15 नवम्बर 2023 – स्मृति ईरानी की चुनावी सभा में घोषणा:
“यहां एक ही मुद्दा है — सिहोरा को जिला बनाना। संतोष बरकड़े जीतेंगे तो ज़रूर बनाएंगे।” - 🗓️ 8 नवम्बर 2023 – विधायक संतोष बरकड़े का मंदिर में वादा:
“जनता ने आशीर्वाद दिया तो सिहोरा को जिला बनवाना मेरी जिम्मेदारी होगी।”
अब सवाल उठता है — क्या यह सब केवल भाषणबाज़ी थी? प्रदर्शनकारियों का यही आरोप है — “हमें सिर्फ ठगा गया।”
“सरकार की नींद खोलो” आंदोलन में गूंजे शंख-घंटे
प्रदर्शन के दौरान शंख, घंटा और मंजीरों की आवाज़ें गूंजती रहीं। सिहोरा से आए सैकड़ों लोग लगभग दो घंटे तक भाजपा कार्यालय के बाहर डटे रहे।
उनका संदेश था साफ:
“जब तक सरकार नहीं जागेगी, हम चुप नहीं बैठेंगे।”
प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि अगर इस बार भी मांग को नजरअंदाज किया गया तो आंदोलन अब प्रतीकात्मक नहीं, व्यावहारिक और सियासी दोनों होगा।
“अब कोई झांसा नहीं चलेगा” – सिहोरावासियों की चेतावनी
अनिल जैन, जो आंदोलन की अगली पंक्ति में हैं, ने बताया:
“सिर्फ रैली, नारे और वादों से अब काम नहीं चलेगा। अगर सिहोरा को जिला बनाने की घोषणा नहीं हुई, तो ये विरोध और तीखा होगा। ये हमारा हक है, कोई खैरात नहीं।”
कृष्ण कुमार कुरारिया ने दो टूक कहा:
“भाजपा ने हर बार वोट मांगे, वादा किया, मगर सत्ता में आते ही सब भूल गए। इस बार जनता भूली नहीं है।”
चुनावी समीकरणों पर असर तय
रानीताल में हुए इस प्रदर्शन ने ना सिर्फ राजनीतिक वादों को बेनकाब किया, बल्कि आने वाले चुनावों की दिशा भी तय कर दी है।
सिहोरा के लोग अब सिर्फ वोटर नहीं, आंदोलनकारी हैं — और जब जनता सवाल पूछने लगे, तब सत्ता को जवाब देना ही पड़ता है।
दीवारों पर नहीं, अब सड़कों पर लिखा जाएगा फैसला
रानीताल में चस्पा पोस्टर अब सिर्फ दीवारों की साज-सज्जा नहीं हैं —
वे उन टूटे वादों की तस्वीर हैं जो एक ज़िले की उम्मीद से जुड़े हैं।
सिहोरा की जनता अब ठान चुकी है —
“या तो जिला मिलेगा, या फिर सत्ता को कीमत चुकानी पड़ेगी।”